नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार देर रात ऐलान किया कि अमेरिका यरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता देता है. ट्रंप ने कहा, ‘अतीत में असफल नीतियों को दोहराने से हम अपनी समस्याएं हल नहीं कर सकते. आज मेरी घोषणा इसराइल और फ़लस्तीनी क्षेत्र के बीच विवाद के प्रति एक नए नज़रिए की शुरुआत है.’ ट्रंप के इस ऐलान का मध्य पूर्व एशिया में बड़े परिणाम देखे जाने की बात कही जा रही है. कहा जा रहा है कि यरुशलम के इजराइल की राजधानी बनने के बाद मध्य पूर्व में शांति प्रक्रिया तेज होगी और टिकाऊ समझौते के रास्ते खुलेंगे. ट्रंप की इस घोषणा से पहले जर्मनी के विदेश मंत्री ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि अगर उसने येरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी तो इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा. वहीं फिलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता ने चेतावनी दी कि इस अमेरिका के इस फैसले के खतरनाक अंजाम हो सकते हैं.
कई देश हैं इस फैसले के खिलाफ
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता देने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना की आलोचना करते हुए कहा कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ईरान सरकार की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार रूहानी ने तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन से फोन पर बात भी की और ट्रंप की घोषणा को ‘‘गलत, अवैध, भड़काऊ एवं बेहद खतरनाक’’ बताया.
ट्रंप ने 2016 में अपने चुनाव अभियान के दौरान इसका वादा किया था. अरब नेताओं ने चेताया कि इस फैसले से पश्चिम एशिया और दूसरी जगहों पर व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो सकते हैं.
ट्रंप ने चुनाव प्रचार में की थी यह घोषणा
ट्रंप प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संवाददाताओं से कहा, ‘राष्ट्रपति कहेंगे कि अमेरिकी सरकार यरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देती है. वह इसे ऐतिहासिक वास्तविकता को पहचान देने के तौर पर देखते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यरुशलम प्राचीन काल से यहूदी लोगों की राजधानी रहा है और आज की वास्तविकता यह है कि यह शहर सरकार, महत्वपूर्ण मंत्रालयों, इसकी विधायिका, सुप्रीम कोर्ट का केंद्र है.’ एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह कदम उठाने के साथ ट्रम्प अपना एक प्रमुख चुनावी वादा पूरा करेंगे. पूर्व में राष्ट्रपति चुनाव के कई उम्मीदवार यह वादा कर चुके हैं. अपने बयान में ट्रंप तेल अवीव से अमेरिकी दूतावास को यरुशलम स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए विदेश मंत्रालय को आदेश भी देंगे.
हालांकि अधिकारी ने कहा कि इस कदम से इजराइल-फलीस्तीन के द्विराष्ट्र संबंधी समाधान पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. सऊदी अरब के शाह सलमान और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सिसी ने ट्रम्प प्रशासन के इस फैसले को लेकर चेतावनी दी है. सलमान ने इसे एक ‘‘खतरनाक कदम’’ बताते हुए आगाह किया कि इससे ‘‘दुनिया भर में मुस्लिमों की भावनाएं भड़केंगी’’.
वहीं सिसी ने कहा कि इससे स्थिति जटिल हो जाएगी और ‘‘पश्चिम एशिया में शांति की संभावनाएं खतरे में पड़ जाएंगी.’’ ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने ट्रम्प की योजना की आलोचना करते हुए कहा कि यह ‘‘गलत, अवैध, भड़काऊ और बेहद खतरनाक’’ है. जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय ने कहा कि यरुशलम पूरे पश्चिम एशिया की स्थिरता के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
पोप फ्रांसिस ने भी इस कदम को लेकर ‘‘गंभीर चिंता’’ जतायी और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के अनुरूप शहर की यथास्थिति का सम्मान करने की प्रतिबद्धता जताने की अपील की. हालांकि यरुशलम में एक कार्यक्रम में शामिल हुए इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्रंप की घोषणा पर कोई टिप्पणी नहीं की. उन्होंने ‘द यरुशलम पोस्ट’ अखबार द्वारा आयोजित एक राजनयिक सम्मेलन में 20 मिनट के अपने भाषण में इसकी जगह दुनियाभर के देशों के साथ इजराइल के सुरक्षा एवं आर्थिक संबंधों की बात की.