अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैप डील जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर बिक्री बढ़ाने के लिए दिए जाने वाला बंपर छूट का दौर जल्द खत्म हो सकता है। ई-कॉमर्स नीति के दूसरे मसौदे में यह खाका तैयार किया है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, ई-कॉमर्स सेक्टर को बेहतर तरीके से नियमित करने के लिए सरकार जल्द ही ई-कॉमर्स नीति का दूसरा मसौदा जारी करेगी। इसमें ई-कॉमर्स कंपनियों पर नकेल कसने की तैयारी है।
नई नीति में इन कंपनियों की ओर से दी जाने वाली छूट और डेटा लोकलाइजेशन के मामले में ज्यादा सख्त रुख अपनाने की तैयारी है। इस नीति में घरेलू कंपनियों के हितों का ध्यान रखा जाएगा। हालांकि, नई नीति कब तक बनकर पेश होगी इसका ब्योरा अभी नहीं मिल पाया है। सूत्रों ने कहा कि उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के सचिव गुरुप्रसाद महापात्रा अगले कुछ दिनों में अपनी टीम के साथ मसौदा नीति का समीक्षा करेंगे। इसके बाद इसे वाणिज्य मंत्री को सौंपा जाएगा।
देश में डेटा रखने का मिल सकता है निर्देश
सूत्रों ने बताया कि ई-कॉमर्स नीति के दूसरे मौसौदे में डीपीआईआईटी अपनी ओर से कई सुझाव दे सकता है। इसमें उपभोक्ताओं का व्यक्तिगत डेटा देश के अंदर रखने की अनिवार्यता की जा सकती है। पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 में भी इस बात का उल्लेख है। सरकारी अधिकारियों का मानना है कि उपभोक्ताओं का डेटा सुरक्षित करना बड़ी चुनौती है। भारत में व्यापार कर रहीं अधिकांश ई-कॉमर्स कंपनियां अपना डेटा विदेशों में रखती है। इसको बदलने को कहा जा सकता है।
उत्पादों के मूल्य-निर्धारण पर स्पष्टता
सरकार इस मसौदे पर बैठक के दौरान ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से बहुत ज्यादा छूट पर घरेलू कंपनियों की शिकायतों पर चर्चा करेगी। सरकार की ओर से ई-मार्केट प्लेस पर दी जाने वाली छूट की वार्षिक समीक्षा भी होगी। अधिकारियों का कहना है कि नई नीति में निश्चित रूप से ई-कॉमर्स कंपनियों की मूल्य-निर्धारण और इस पर मिलने वाली छूट को एक सीमा में रखने पर बात होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि नई नीति से कई ई-कॉमर्स कंपनियों को दिक्कतें आ सकती हैं और ये उनकी मौजूदा बिजनेस मॉडल को बिगाड़ सकती हैं। घरेलू कंपनियों का कहना है कि इस तरह की मूल्य-निर्धारण से उनका बाजार खराब हो रहा है।
घरेलू कंपनियों को मजबूती देने की योजना
सूत्रों के अनुसार, नई नीति में घरेलू उत्पादकों और कंपनियों को मजबूती देने की योजना अभी है। अभी ज्यादातर ई-कॉमर्स कंपनियों में घरेलू कंपनियों को तवज्जों नहीं दी जाती है। घरेलू कंपनियों का कहना था कि पिछले मसौदे में उनके हितों का संरक्षण नहीं किया गया था। वहीं, उपभोक्ताओं का कहना था कि यह ओला, मेक माई ट्रिप और पेटीएम जैसे विदेशी फंड्स से चल रहे समूहों के पक्ष में झुका हुआ है। इसका सबसे विवादास्पद पहलू इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर पर कस्टम ड्यूटी लगाने से जुड़ा प्रावधान था।
पसंद आया तो—— कमेंट्स बॉक्स में अपने सुझाव व् कमेंट्स जुरूर करे और शेयर करें
आईडिया टीवी न्यूज़ :- से जुड़े ताजा अपडेट के लिए हमें फेसबुक यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो लाइक करें