- राज्यपाल ने सोमवार को मुख्यमंत्री कमलनाथ को दूसरी चिट्ठी लिखकर आज ही फ्लोर टेस्ट के निर्देश दिए हैं
- इससे पहले स्पीकर ने कोरोनावायरस का हवाला देकर विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च तक स्थगित की थी
नई दिल्ली. मध्य प्रदेश में जारी सियासी घमासान के बीच भाजपा की फ्लोर टेस्ट की मांग पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने याचिका दायर की है। भाजपा ने दावा किया है कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है और कांग्रेस को सरकार चलाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। इस स्थिति में तत्काल विधानसभा फ्लोर टेस्ट कराया जाए। इससे पहले राज्यपाल लालजी टंडन ने सोमवार को मुख्यमंत्री को दूसरी चिट्ठी लिखकर आज ही बहुमत परीक्षण कराने के निर्देश दिए। कल बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के बाद स्पीकर ने कोरोनावायरस का हवाला देते हुए विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च तक स्थगित कर दी थी।
- इससे पहले राज्यपाल ने 14 मार्च को कमलनाथ से कहा था कि वे 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराएं। हालांकि, रविवार रात कमलनाथ ने उनसे मुलाकात की और बताया कि सोमवार को फ्लोर टेस्ट नहीं होगा। बताया जाता है कि इस बात से राज्यपाल नाराज थे। वे बजट सत्र के पहले दिन अभिभाषण के बाद सिर्फ 12 मिनट में विधानसभा से राजभवन लौट गए थे।
- राज्यपाल का दूसरा पत्र मिलने के बाद कमलनाथ उनसे मिलने राजभवन पहुंचे थे। इसके बाद कमलनाथ ने कहा- हम फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं, लेकिन संवैधानिक दायरे में रहकर और यह बात हमने राज्यपाल से कह दी है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के अल्पमत में होने का दावा कर रही है, अगर ऐसा है तो वे अविश्वास प्रस्ताव लाएं। कमलनाथ ने आरोप लगाया कि भाजपा ने हमारे 16 विधायकों को बंधक बनाकर रखा है।
राज्यपाल बोले- लोकतंत्र बचाने की जिम्मेदारी मेरी
विधानसभा की कार्यवाही स्थगित होने के बाद शिवराज सिंह के साथ भाजपा के 106 विधायक नाराजगी जताने राजभवन पहुंचे और राज्यपाल के सामने परेड की। शिवराज ने राज्यपाल को 106 विधायकों के साथ का पत्र भी सौंपा। राज्यपाल ने पूछा कि यहां सभी लोग स्वेच्छा से आए हैं? विधायकों ने कहा- हां। फिर राज्यपाल ने कहा कि निश्चिंत रहें, आपके अधिकारों के हनन नहीं होगा। लोकतंत्र बचाने की जिम्मेदारी मेरी है। शिवराज ने कहा कि कमलनाथ रणछोड़दास हैं। उनकी सरकार को कोरोनावायरस भी नहीं बचा सकता।
ऐसे केस में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में क्या फैसला दिया?
भाजपा ने याचिका में 1994 के एसआर बोम्मई vs भारत सरकार, 2016 के अरुणाचल प्रदेश, 2019 के शिवसेना vs भारत सरकार जैसे मामलों का जिक्र किया है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। अरुणाचल प्रदेश के मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल को लगता है कि मुख्यमंत्री बहुमत खो चुके हैं तो वे फ्लोर टेस्ट का निर्देश देने के लिए स्वतंत्र हैं। 2017 में गोवा से जुड़े एक मामले में फ्लोर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक और टिप्पणी की- ‘फ्लोर टेस्ट से सारी शंकाएं दूर हो जाएंगी और इसका जो नतीजा आएगा, उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी विश्वसनीयता मिल जाएगी।’
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