रंगों का त्योहार होली इस बार मंगलवार 10 मार्च को मनेगा। इससे एक दिन पहले 9 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार होलिका दहन पर इस बार भद्रा दोष बाधक नहीं होगा। इस दिन पूर्णिमा तिथि रात को करीब 11 बजे तक होने से प्रदोष काल में होलिका दहन हो सकेगा। वहीं पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और अन्य ग्रहों की स्थिति से हर्ष, शंख और हंस नाम के 3 राजयोग भी बन रहे हैं। जिनमें होलिका दहन होने से मान-सम्मान, पारिवारिक सुख और समृद्धि प्राप्ति होती है। शुभ योगों में होलिका दहन होना देश के लिए शुभ और समृद्धिकारक रहेगा।
राजयोग में होलिका दहन का शुभ फल
होलिका दहन पर बुध और चंद्रमा से शंख योग बन रहा है। इस राजयोग के प्रभाव से देश की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। देश की प्रगति और आर्थिक स्थिति में भी सुधार होने की संभावना है। वहीं, शनि के प्रभाव से हर्ष नाम का राजयोग बन रहा है। इसके प्रभाव से देश की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। दुश्मनों पर विजय मिलेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताकतवर देशों में भारत की गिनती होगी। वहीं, स्वराशि स्थित बृहस्पति से बन रहे हंस योग से देश में धार्मिक भेदभाव की स्थिति खत्म होगी।
ग्रह नक्षत्रों से बन रहे शुभ योग
- इस बार पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में होली मनेगी। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र सुख-सुविधा और समृद्धि आदि का कारक है। ये ग्रह उत्सव, हर्ष, आमोद-प्रमोद और ऐश्वर्य का भी कारक है। इससे सालभर शुक्र की कृपा मिलेगी।
- आज सोमवार व पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र होने से ध्वज योग बन रहा है। ज्योतिषाचार्य पं. मिश्रा के अनुसार ध्वज योग से यश-कीर्ति और विजय मिलती है। वहीं, सोमवार को चंद्रमा का दिन माना जाता है। इसलिए पूर्णिमा तिथि होने से आज चंद्रमा का प्रभाव ज्यादा रहेगा। इसके साथ ही स्वराशि स्थित बृहस्पति की दृष्टि चंद्रमा पर होने से गजकेसरी योग का प्रभाव रहेगा।
- आज सूर्य और बुध एक ही राशि में होकर बुधादित्य योग बना रहे हैं। गुरु और शनि भी अपनी-अपनी राशि में हैं। तिथि-नक्षत्र और ग्रहों की इस विशेष स्थिति में होलिका दहन पर रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, शत्रुओं पर भी विजय मिलेगी। इसके साथ ही धुलेंडी पर 10 मार्च को त्रिपुष्कर योग बनेगा।
होली की पूजा कैसे और कब करें
होली की पूजा से पहले भगवान नरसिंह और प्रह्लाद की पूजा की जाती है। पूजा के बाद अग्नि स्थापना की जाती है यानी होली जलाई जाती है। उस अग्नि में अपने-अपने घर से होलिका के रूप में उपला, लकड़ी या कोई भी लकड़ी का बना पुराना सामान जलाया जाता है। मान्यता है कि किसी घर में बुराई का प्रवेश हो गया हो तो वह भी इसके साथ जल जाए।
पूजा का महत्व
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है, फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन में जौ और गेहूं के पौधे डाले जाते हैं। शरीर में उबटन लगाकर उसके अंश भी डाले जाते हैं। ऐसा करने से जीवन में आरोग्य और सुख समृद्धि आती है।
भद्रा में नहीं होता होलिका दहन और पूजा
होली की पूजा प्रदोषकाल यानी शाम को करने का विधान है। होलिका दहन पूर्णिमा तिथि पर होने से इस पर्व पर भद्रा काल का विचार किया जाता है। भद्रा काल में पूजा और होलिका दहन करने से रोग, शोक, दोष और विपत्ति आती है। लेकिन इस साल भद्रा काल दोपहर करीब 1:38 तक ही रहेगा। इसलिए शाम को होलिका पूजन और दहन किया जा सकता है।
पूर्णिमा तिथि
प्रारंभ – 9 मार्च को सुबह 03 बजे
समाप्त – 9 मार्च को रात 11:20 तक
भद्रा काल
9 मार्च की सुबह 09:40 से दोपहर 12:25 तक
भद्रा काल रहेगा, इस समय शुभ कार्य वर्जित है।
होलिका दहन और पूजा मुहूर्त
शाम 6:35 से रात 11:05 तक
रंग धुलेंडी
10 मार्च को होली पर माता-पिता सहित सभी बड़े लोगों के पैरों में रंग लगाकर आशीर्वाद लें। इससे प्रेम बढ़ता है।