कब्ज का घरेलू आयुर्वेदिक उपाय-पेट की गेस का रामबाण इलाज क्या है?

इन तीन फलों का मिश्रण 20- 20 साल पुरानी कब्ज भी ठीक करता है जरूर पढ़ें।े अमृत तुल्य त्रिफला बनाने की विधि।

Constipation मित्रों आयुर्वेद के अंनुसार हमारे शरीर में जितने भी रोग होते हैं। वो त्रिदोष : वात, पित्त , कफ, कब्ज के बिगड़ने से होते हैं। वैसे तोे आज की तारीख में वात, पित्त , कफ को पूर्ण रूप से समझना समनिया बुद्धि के व्यक्ति के बस की बात नहीं है। लेकिन आप थोड़ा समझना चाहते है। तो इतना जान लीजिए।

सिर से लेकर छाती के मध्य भाग तक जितने रोग होते हैं। वो कफ के बिगड़ने के कारण होते है। ओर छाती के मध्ये से पेट खत्म होने तक जितने रोग होते है। वो पित के बिगड़ ने से होते हैं। ओर उसके नीचे जितने रोग होते है वो वात ( वैयू ) के बिगड़ने से होते हैं। लिकिन कई बार गेस होने से सिरदर्द होता है। तब ये वात बिगड़ने से मना जाएगा। ( खेर ये थोड़ा कठिन वश्य है। )

जैसे जुकाम होना, छींके ेअाना , खासी होना, ये कफ बिगड़ने के रोग है।

तो ऐसे रोगों में आयुर्वद में तुलसी को लेने को कहा जाता हैं। क्यों कि तुलसी कफ नाशक है।

ऐसे ही पित के रोग के लिऐ जिरे का पनी लेने को कहा जाता है। कियोंकी जीरा पित नाशक है।

Constipation:- इसी तरह मेथी को वात नाशक कहा जाता हैं।

लेकिन मेथी जादा लेने से वात तो संतुलित होजता है लिकिन ये पिट को बड़ा देता है।

माहरिशी बैगभट जी कहते है। आयुर्वेदिक ज्यादातर औषधियां वात, कफ, या पित नाशक होती है लेकिन त्रिफला ही एक इसी औषधि है जो कि वात कफ, ओर पित तीनों को ेएक साथ संतुलित रखती है।

वगफत जी त्रिफला की इतनी प्रशंसा करते है की उन्होंने ेआयुर्वेद के 150 सेेे अधिक सूत्र केवल त्रिफला पे ही लेखे है। त्रिफला को ऐसे ले तो ये लाभ होगा या वेसे से लें तो वो लाभ होगा।

त्रिफला का अर्थ क्या है।?

त्रिफला – तीन फल

कोन से तीन फल?

अमला, बहेड़ा, ओर हरेड इन तीनों से बनता है त्रिफला चूर्ण।

वगफट जी त्रिफला चूर्ण के बारे में ओर बताते है। की त्रिफला चूर्ण में तीनों फलों की मात्रा कभी सामान्य नहीं होना चाहिए। यह अधिक उपयोगी नहीं होता। आज कल बाजार में मिलने वाले त्रिफला चूर्ण में तीनों फलों की मात्रा लगभग समनिये होती है।

त्रिफला चूर्ण हमेशा 1:2:3 की मात्रा में ही बननी चाहिए। ेअर्थात मान लो कि आपको 200 त्रिफला चूर्ण बनाना है तो उसमें( हरड़ चूर्ण 33.33 ग्राम होना चाहिए) ( बहेड़ा चूर्ण 66.66 ग्राम होना चाहिए ) ओर( अमला चूर्ण ( 99.99 ग्राम होना चाहिए ) तो इन तीनों को मिलने से बनेगा आयुर्वेद में दिये विधी से बना त्रिफला चूर्ण। जो कि सरीर के लिऐ बहुत ही लाभकारी है।

बगफत जी कहते है त्रिफला चूर्ण का सेवन ेअलग अलग समय करेने से भिन भिन परिणाम मिलते है।

रात को अगर आप त्रिफला चूर्ण लेंगे तो रिचक होता है अर्थात सफाई करने वाला।

पेट की सफाई करने वाला बड़ीेेे ेअानत की सफाई करने वाला। सारिर के सभी अंगो की सफाई करने वाला । कब्जियत दुर करने े वाला 30- 40 सालो पुरानी कब्जियत को भी दुर करता है ये त्रिफला चूर्ण।

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