भारत सरकार के बढ़ते दबाव के कारण चीन के पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना को एचडीएफसी में से अपनी हिस्सेदारी कम करनी पड़ी है। अब एचडीएफसी में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से भी कम हो गयी है। भारत सरकार के इस दबाव से चीन की शी जिनपिंग सरकार खुश नहीं थी। चीन की ओर से कई प्रयास किए गये कि किसी तरह एचडीएफसी में प्रभावी हिस्सेदारी बनाई रखी जाये। जबकि भारत सरकार उसकी प्रभावी हिस्सेदारी बनाये रखने की क्षमता के खिलाफ थी।
इसी का परिणाम है कि चीन का सेंट्रल बैंक का नाम जून तिमाही के लिए एचडीएफसी की शेयरहोल्डिंग का खुलासा करने वाली सूची में शामिल नहीं है। इस सूची से उन शेयर धारकों का पता चलता है जिनकी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से अधिक होती है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने 31 मार्च 2020 की समाप्त तिमाही के दौरान 1 प्रतिशत से थोड़ा अधिक होल्डिंग बढ़ाई थी। बताया जाता है कि भारत सरकार इस बात से खुश नहीं थी कि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना बिना किसी पूर्व सूचना के अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में सक्षम है।
एचडीएफसी के उपाध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी केकी मिस्त्री ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि किसी भी अन्य संस्थागत निवेशक की तरह वे भी इक्विटी निवेशक हैं। उन्होंने कहा उनकी कितनी हिस्सेदारी है इसकी स्पष्ट जानकारी मेरे पास नहीं है। लेकिन ये सामान्य बात है इस बारे में कोई भी विवाद होना अनावश्यक है।
बाजार के एक्सपर्ट्स का कहना है कि रिपोर्ट के अनुसारपीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने लोगों के रोष से बचने के लिए एचडीएफसी में अपनी हिस्सेदारी घटाई होगी। एचडीएफसी मेंपीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की हिस्सेदारी बढ़ाने से पड़ोसी देशों से फॉरेन पोर्टफोलिया इन्वेस्टर्स की जांच में इजाफा हुआ था। इससे ये भय भी बढ़ा था कि चीन कोविड-19 संकट के बाद गिरे हुए स्टॉक की कीमतों का फायदा उठाना चाहता है।
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