सूरत: गुजरात चुनाव में सूरत जिले की लिंबायत विधानसभा सीट पर इन दिनों ‘शकीना दारूवाली’ की चर्चा चारों ओर है. यहां 65 वर्षीय शकीना अंसारी को शकीना दारूवाली के नाम से जाना जाता है. शकीना खुली जीप में सवार होकर चुनाव प्रचार कर रही हैं. उनका बेटा अकरम अंसारी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की तरफ से चुनावी मैदान में है. यहां पहले चरण में 9 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे. संगीता पाटिल भाजपा से मैदान में हैं. वे यहां से विधायक भी हैं. कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर घर वापसी करने वाले रविंद्र पाटिल को टिकट दिया है. एनसीपी द्वारा मैदान में आने से कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. क्योंकि एनसीपी में कांग्रेस के ही बागी लोग शामिल हुए हैं. इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है.
सूरत जिले में 16 विधानसभा सीट हैं. यहां एनसीपी ने 9 जगहों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. लिंबायत सीट मराठी बहुल इलाका है. यहां उत्तर भारतीयों की भी तादाद काफी अच्छी है. अकरम उत्तर भारतीय होने के आधार पर हिंदी भाषियों को अपने पक्ष में करने में जुटे हैं. जबकि भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार महाराष्ट्र के हैं. अकरम की मां शकीना शराब तस्कर और लेडी डॉन के तौर पर जानी जाती हैं. शकीना खुद को इन नामों से नवाजे जाने से इनकार भी नहीं करती हैं.
वाराणसी में एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली शकीना जब 13 साल की थीं, उनका विवाह अमानुल्ला अंसारी से हुआ था और शादी के बाद वह सूरत आ गई थीं. शकीना के 8 बच्चे हैं और अकरम सबसे बड़ा बेटा है. शकीना बताती हैं कि दारूवाली बनने के लिए खुद पुलिस ने उन्हें मजबूर किया था. शुरू में पुलिस ही उन्हें बेचने के लिए शराब देती थी. वह उन्हें कपड़ा कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को बेचा करती थी. वह बताती हैं, ’35 साल पहले जब वह सूरती आई, तो यहां जंगल था. लोकल गुंडे महिलाओं को परेशान करते थे. एक दिन मैंने देखा कि दो गुंडे एक महिला को परेशान कर रहे थे. पहले मैंने उन्हें चेतावनी दी, लेकिन जब वे नहीं माने तो मैंने लाठी से उनकी खूब पिटाई की.’ शकीना बताती हैं कि शराब बेचने का काम उन्होंने 10-12 साल पहले ही छोड़ दिया था. इससे होने वाली कमाई को वह अस्पताल और स्कूल बनाने में दान करती थी
हामिद शेख लिंबायत में शकीना के घर के पास ही रहते थे, बताते हैं, ‘शकीना अपने घर के बाहर ही शराब बेचा करती थी. हम इसका विरोध करते थे तो वह हमें धमकी देती थी. बाद में वह दूसरे मौहल्ले में चली गई. मौहल्ले के सभी लोग उसके जाने से खुश हुए थे. सभी लोग उससे डर के रहते थे.’ लेडी डॉन के बेटे अकरम बताते हैं कि लिंबायत में लोगों के बीच उनकी अच्छी छवि है. हर सामाजिक कामों में वह आगे रहते हैं. अकरम पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. अपने बेटे के चुनाव पर शकीना कहती हैं, ‘इस उम्र में भी मैं अपने बेटे की जीत के लिए पूरी जी-जान लगा दूंगी. बीजेपी की संगीता और कांग्रेस के रवींद्र मुझे अच्छी तरह जानते हैं. वे लोग भी अच्छे हैं, लेकिन मुझे अपने बेटे की जीत के लिए काम करना है.’
उधर, संगीता पाटिल कहती हैं, ‘मेरी जीत सुनिश्चित है. हमने लिंबायत के लोगों के लिए बहुत काम किया है, जिसका फायदा उन्हें जरूर मिलेगा. जहां तक अकरम का सवाल है, वह मुस्लिम वोटों को विभाजित करेंगे.’ कांग्रेस के रविंद्र पाटिल पेशे से एक चिकित्सक हैं. वह भी दावा कर रहे हैं कि उनकी जीत पक्की है. वह लागातार चार बार से पार्षद हैं और लोगों के बीच काफी पैठ है.
टिकट नहीं तो वोट नहीं: बता दें कि लिंबायत और सूरत पूर्व के मुस्लिमों ने शहर में बैनर लगाए थे, ‘मुस्लिमों के वोट नहीं तो मुसलमानों का वोट नहीं.’ यह चुनौती सीधी कांग्रेस के लिए थी. यहां का मुस्लिम वोटर कांग्रेस का हार्डकोर वोटर रहा है. लेकिन पार्टी ने हमेशा ही मुसलमानों को टिकट देने में संकोच किया. मुस्लिमों की अनदेखी कांग्रेस को भारी पड़ गई. इसके अलावा एनसीपी ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करके कांग्रेस की राह कांटों भरी बना दी.
मुश्किल भरा मुकाबला: लिंबायत में मुकाबल जो कभी बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहा करता था, लेकिन इस बार यह मुकाबला और जटिल हो गया है. कांग्रेस और भाजपा के साथ शिवसेना ने भी मराठी समाज के सम्राट पाटिल को उतारा है. तीन मराठी उम्मीदवारों का मुकाबला एक उत्तर भारतीय से हो रहा है. शिवसेना ने जहां भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर दी है वहीं पाटीदार समाज के लोगों का विरोध भी भाजपा को झेलना पड़ रहा है.