चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता के प्रतीक हैं भगवान गणेश

भारत में गणेश जी के अनेक मंदिर न केवल प्रसिद्ध हैं वरण उनके प्रति प्रगाढ़ आस्था, श्रद्धा और विश्वास का भी प्रतीक हैं। कोई घर, गली, मोहल्ला, भवन, शहर ऐसा नहीं जहाँ गणेश जी विराजित न हों। उनका पूजन न होता हो।

प्रथम पूज्य शिव और पार्वती के पुत्र, गणों के स्वामी, गज जैसा सिर, मूषक सवारी, केतु के देवता, चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता के प्रतीक उनकी चार भुजाएं, महाबुद्धित्व का प्रतीक लंबी सूंड, विघ्न हरण मंगल करण एवं 108 नामों से पुकारे जाने वाले गणपति अर्थात गणेश भगवान का पूजन विश्वव्यापी हैं। भारत में ही नहीं वरण दुनिया के अनेक देशों में पूजे जाते हैं विनायक।

भारत में गणेश जी के अनेक मंदिर न केवल प्रसिद्ध हैं वरण उनके प्रति प्रगाढ़ आस्था, श्रद्धा और विश्वास का भी प्रतीक हैं। कोई घर, गली, मोहल्ला, भवन, शहर ऐसा नहीं जहाँ गणेश जी विराजित न हों। उनका पूजन न होता हो। सृष्टि और संस्कृति में आदि काल से सर्व प्रथम पूजे जाते हैं। गणपति के आस्था धामों पर मेले जुड़ते हैं, भव्य शोभा यात्राएं आयोजित की जारी है। गणेश चतुर्थी पर इनकी स्थापना एवं अनन्त चतुर्थी को विसर्जन शुभ फलदायक माना जाता है। मुम्बई के गणेश उत्सव की शान दुनिया भर में हैं।

तिब्बत में गणेश जी को दुष्टात्माओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता हैं। नेपाल में सर्वप्रथम सम्राट अशोक की पुत्री चरुमित्रा ने गणेश मंदिर की स्थापना की थी एवं उन्हें सिद्धिदाता के रूप में मन था। मिश्र में ईसा से 236 पूर्व के कई मंदिर थे और उन्हें कृषि रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता था।

अमेरिका के फ्लोरिडा, एरिजोना के फीनिक्स शहर, ऊटाह की साल्टलेक सिटी, केलिफोर्निया के सेंट जोज शहर में, कनाडा के टोरेंटो, ब्रेंम्पटन, एडमांटन शहर में, मलेशिया के कोट्टुमलाई, जलान पूड्डु लामा, इपोह शहरों में एवं नॉर्वे, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, कम्बोडिया, एवं सिंगापुर आदि कई देशों में गणपति के मंदिर हैं। इन देशों में श्रद्धालु अपनी-अपनी मान्यताओं और अपने-अपने विश्वास के साथ  विधि पूर्वक उनका पूजन करते हैं। इन देशों में गणेश जी को अमूमन गणेश, गणपति, विनायक एवं सिद्धि विनायक पुकारा जाता हैं और इन्हीं नामों पर मंदिर बने हैं। जनमानस में व्यापकता गणपति के प्रति समाज के जनमानस में आस्था और विश्वास की व्यापकता का भान इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हें 108 नामों से पुकारा जाता हैं ।

जनमानस में इनके प्रचलित रूपों में बालगणपति, भालचन्द्र, बुद्धिनाथ, धूम्रवर्ण, एकाक्षर, एकदंत, गजकर्ण, गजानन, गजनान, गजवक्र, गजवक्त्र, गणाध्यक्ष, गणपति, गौरीसुत, लंबकर्ण, लंबोदर, महाबल, महागणपति, महेश्वर, मंगलमूर्ति, मूषकवाहन, निदीश्वरम, प्रथमेश्व, शूपकर्ण, शुभ, सिद्धिदाता, सिद्धिविनायक, सुरेश्वरम, वक्रतुंड, अखूरथ, अलंपत, अमित, अनंतचिद, विनायक, सिद्धि विनायक, विध्न हरण, मंगलकरण आदि रूपों में पूजा जाता हैं।

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