कुछ दिन पहले मायावती ने पार्टी उपाध्यक्ष के पद से आनंद कुमार को हटा दिया था. तब कहा गया कि भाई भतीजावाद का आरोप लगने पर उन्होंने यह कदम उठाया था. मगर सवाल है कि यदि उन्हें भाई भतीजावाद की इतनी फिक्र होती फिर भाई-भतीजे को पार्टी में अहम पद के लिए क्यों चुना?
लोकसभा चुनावों के बाद बहुजन समाज पार्टी (बीजेपी) की प्रमुख मायावती ने पार्टी के ढांचे में बड़ा बदलाव किया है. मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को एक बार फिर पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है जबकि भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक की जिम्मेदारी दी गई है. दूसरी बार है जब मायावती ने आनंद कुमार को पार्टी में इतना बड़ा ओहदा दिया है.
कुछ दिन पहले मायावती ने पार्टी उपाध्यक्ष के पद से आनंद कुमार को हटा दिया था. तब कहा गया था कि भाई भतीजावाद का आरोप लगने पर उन्होंने यह कदम उठाया था. मगर सवाल है कि यदि उन्हें भाई भतीजावाद की इतनी फिक्र होती तो फिर परिवार के लोगों को पार्टी में अहम पद के लिए क्यों चुना गया?
असल में 2012, 2014, 2017 में हार, और 2019 में भी अपेक्षित सफलता न मिलने से मायावती दबाव में हैं. इन वर्षों में पार्टी के कदावर नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और ब्रजेश पाठक के चले जाने से बसपा में ऐसे विश्वसनीय लोगों की कमी हो गई जिस पर मायावती भरोसा करती रही हैं.
इन बातों के भी कयास लगाये जा रहे हैं कि क्या मौजूदा स्थिति में मायावती कमजोर महसूस कर रही हैं? आनंद कुमार को फिर से बसपा में लाने के पीछे वह क्या सोच रही हैं? क्या अपने खास नेताओं के पार्टी छोड़ कर चले जाने के बाद मायावती को बीएसपी को संभालने में दिक्कत आ रही है? क्या इसीलिए मायावती ने आनंद कुमार को बसपा का पदाधिकारी बनाया है ताकि वह पार्टी को फिर से खड़ा करने में उनका मददगार बन सकें?
किस पर करें भरोसा
सवाल यह भी है कि क्या मायावती को अब दूसरों पर से भरोसा उठ गया है? अथवा मायावती को लगने लगा है कि राजनीति में भी सगा ही अपना होता है. सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि मौजूदा हालात बताते हैं कि मायावती आनंद कुमार के अलावा किसी और पर भरोसा नहीं कर सकतीं.
बसपा का इतिहास बताता है कि मायावती ने राजनीति में जिसे भी करीबी माना, उसी शख्स ने पार्टी का दामन छोड़ विरोधी दलों का हाथ थामा है. इनमें स्वामी प्रसाद मौर्या और नसीमुद्दीन सिद्दीकी का नाम सबसे ऊपर है. स्वामी प्रसाद मौर्या एक समय मायावती के दाहिने हाथ कहे जाते थे, लेकिन उन्होंने भगवा गमछा ओढ़ लिया. यही कहानी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ दोहराई गई और उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया.
विरासत की चिंता
साठ की उम्र पार कर चुकीं मायावती को पार्टी विरासत की भी चिंता है. हालांकि मायावती कह चुकी हैं कि सतीशचंद्र मिश्रा कभी उनके उत्तराधिकारी नहीं बनेंगे. उन्होंने 14 अप्रैल 2017 को साफ कहा था कि बसपा में उनका उत्तराधिकारी कोई दलित या मुस्लिम ही हो सकता है.
बहरहाल, दानिश अली को लोकसभा में बसपा का नेता बनाया गया है, और आनंद कुमार के साथ उनके बेटे आकाश कुमार को पार्टी में अहम जिम्मेदारी दी गई है. क्या माना जाए कि पार्टी में मायावती ने वो नया चेहरा खोज लिया है जिस पर वह भरोसा कर सकें?