सुनवाई के दौरान बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने कहा है कि कोई विधायक हिरासत में नहीं है.
कमलनाथ सरकार की ओर से पेश होने वाले वकील दुष्यंत दवे ने कहा है कि चुने हुए विधायकों को क्षेत्र की सेवा करनी होती है. वह अचानक नहीं कह सकते कि इस्तीफा दे रहे हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश मामले की सुनवाई दो बजे तक के लिए टाल दी गई है. ब्रेक पर जाने से पहले सुनवाई कर रही बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने से पहले स्पीकर का संतुष्ट होना ज़रूरी है. वहीं बीजेपी नेताओं की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक मुखिया हैं. उनकी जिम्मेदारी है देखना कि सब कुछ संविधान के मुताबिक चले.
#MadhyaPradesh CM Kamal Nath: Digvijaya ji is our Rajya Sabha candidate, he went to meet MLAs but he was told that he is security risk. He became a security risk amid 500 Karnataka police personnel?This shows MLAs have been held hostage&BJP is attempting to hijack the government. pic.twitter.com/lt46LwEM42
— ANI (@ANI) March 18, 2020
बता दें कि ये सुनवाई पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नौ विधायकों की याचिका पर हो रही है. सुनवाई के दौरान कमलनाथ सरकार की ओर से पेश होने वाले वकील दुष्यंत दवे ने कहा है कि 16 विधायकों को अवैध हिरासत में रखा गया है. इसके बाद बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने इसे गलत बताया और कहा कि कोई विधायक हिरासत में नहीं है. इसपर वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि चुने हुए विधायकों को क्षेत्र की सेवा करनी होती है. वह अचानक नहीं कह सकते कि हम इस्तीफा दे रहे हैं. दवे ने मांग की कि विधायकों को रिहा किया जाए और मध्य प्रदेश भेजा जाए.
मामला संविधान पीठ को भेजा जाए- कांग्रेस
दवे ने आगे कहा, ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं. क्या उसके लिए ऐसा तरीका अपनाया जाएगा?” इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम भी राज्य कैबिनेट के काम मे अड़चन नहीं डालना चाहते. मतलब राज्य सुचारू रूप से चले, यही चाहते हैं. दवे ने कहा कि यह साधारण फ्लोर टेस्ट का मामला नहीं. पैसे और ताकत का इस्तेमाल कर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. पूरी दुनिया एक संकट (कोरोना) से जूझ रही है. यहां लोकतंत्र का हरण किया जा रहा है. कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि मामला संविधान पीठ को भेजा जाए और इसपर कोई अंतरिम आदेश न दिया जाए.
22 विधायकों की सीट पर चुनाव हो और फिर फ्लोर टेस्ट करवाएं- कमलनाथ सरकार
दवे ने राज्यपाल लालजी टंडन पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि सीएम कमलनाथ ने राज्यपाल को विधायकों के अगवा हो जाने की जानकारी द, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया. दवे ने कहा कि बीजेपी ने जो चिट्ठी विधायकों के नाम से सौंपी है, उसकी जांच होनी चाहिए. बंगलुरू जाने वाले हमारे नेताओं को विधायकों से मिलने नहीं दिया जाता. राजनीतिक लड़ाई को बाहर ही लड़ने दिया जाए. कोर्ट बीजेपी की याचिका पर विचार न करे. अगर 22 विधायकों ने इस्तीफा दिया है तो पहले उनकी सीट पर चुनाव हो और फिर फ्लोर टेस्ट करवाया जाए.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में ये सुनवाई राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नौ विधायकों की याचिका पर हुई. 9 बीजेपी विधायकों में गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, रामेश्वर शर्मा, विष्णु खत्री, विश्वास सारंग, संजय सत्येंद्र पाठक, कृष्णा गौर और सुरेश राय शामिल हैं. याचिका में राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार का तुरंत फ्लोर टेस्ट कराए जाने की मांग की गई थी.
दायर याचिका में क्या कहा गया है?
याचिका में आरोप लगाया है कि एमपी विधानसभा में बहुमत खो चुकी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार फ्लोर टेस्ट को टालने की कोशिश कर रही है. याचिका में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक की सारी स्थिति बताई गई है. कहा गया है कि राज्य में बहुमत खो चुकी सरकार बहानेबाजी कर रही है. उसके कहने पर विधानसभा स्पीकर ने सत्र को 26 मार्च तक के लिए टाल दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का भी हवाला याचिका में दिया गया है. कहा गया है कि 1994 में एस आर बोम्मई मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह साफ कर चुका है कि सरकार का शक्ति परीक्षण विधानसभा के पटल पर होना जरूरी है. बाद में नबाम रेबिया, रामेश्वर प्रसाद, जगदंबिका पाल जैसे मामलों के फैसले में भी यही व्यवस्था दोहराई गई. पिछले 2 सालों में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक और महाराष्ट्र में सरकार को 24 घंटे के भीतर विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. इस मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए.
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