नई दिल्ली. राम जन्मभूमि विवाद को हल करने के लिए अयोध्या वार्ता कमेटी मध्यस्थता करेगी। इसमें हिंदू और मुसलमान दोनों नेताओं को शामिल किया जाएगा। फिलहाल अयोध्या मसले पर 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच रोज सुनवाई कर रही है। शीर्ष कोर्ट ने भी मामले के निपटारे के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था, जो किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा था।
जमात उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी ने रविवार को बताया- 2016 में अयोध्या वार्ता कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी एक बार फिर भूमि विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर बातचीत करेगी। मध्यस्थता प्रक्रिया संभवत: अक्टूबर से शुरू होगी।
‘पहले कमजोर नेता मध्यस्थता में शामिल हुए’
कासमी ने कहा, ‘‘अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए कई प्रयास हुए। पहले हुई मध्यस्थता प्रक्रिया में कमजोर नेताओं को शामिल किया गया। इसके चलते कोई नतीजा नहीं निकल सका। कई मुस्लिम चाहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बने। वे यह भी चाहते हैं कि मंदिर के पास ही मस्जिद का निर्माण हो। इससे धार्मिक सौहार्द का संदेश जाएगा।’’
‘‘अगर अदालत अयोध्या विवाद को सुलझाना चाहती तो यह बीते 70 साल में हो गया होता। मुझे नहीं लगता कि कोर्ट इसका कोई असरदार हल दे पाएगा।’’
कोर्ट के आदेश से मार्च में बनाया था मध्यस्थता पैनल
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को इस मामले को बातचीत से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था। इसमें पूर्व जस्टिस एफएम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, सीनियर वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। हालांकि, पैनल मामले को सुलझाने के लिए किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका।
हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला विराजमान।