अमित शाह ने कहा, ‘‘हम शिवसेना के साथ सरकार बनाने को तैयार थे, लेकिन उनकी कुछ शर्तें ऐसी थीं जिन्हें हम मान नहीं सकते हैं।’’
नई दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के निर्णय पर विपक्ष द्वारा ‘‘कोरी राजनीति’’ करने का बुधवार को आरोप लगाया और कहा कि यदि किसी दल के पास संख्याबल है तब वह अब भी राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का दावा कर सकता है। शाह ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘राज्यपाल महोदय ने अधिसूचना के बाद सभी पार्टियों को 18 दिन का समय दिया था। महाराष्ट्र में सभी पार्टियों को पूरा समय दिया गया। अब भी अगर किसी के पास संख्या है तो वे एकत्र होकर राज्यपाल के पास जा सकते हैं।’’ भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगने से नुकसान भाजपा का हुआ है, विपक्ष का नहीं।
हम जनादेश का सम्मान करते हैं लेकिन भाजपा महाराष्ट्र में सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी, हम गठबंधन में चुनाव लड़े थे लेकिन अब हमारे साथी दल ने ऐसी शर्त रख दी है जो हमको स्वीकार्य नहीं है।
पर जो लोग दावा कर रहे हैं कि उनको सरकार बनाने का मौका मिले, तो अब उनके पास मौका है। pic.twitter.com/XHq04FX9a6
— Amit Shah (@AmitShah) November 13, 2019
उन्होंने कहा, ‘‘हम शिवसेना के साथ सरकार बनाने को तैयार थे, लेकिन उनकी कुछ शर्तें ऐसी थीं जिन्हें हम मान नहीं सकते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘ राष्ट्रपति शासन पर जो हाय तौबा मची है, वह जनता की सहानुभूति प्राप्त करने का निरर्थक प्रयास है। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन को लेकर विपक्ष की प्रतिक्रियाएं एक कोरी राजनीति हैं, इसके अलावा कुछ नहीं है। राज्यपाल महोदय ने किसी प्रकार से भी संविधान का उल्लंघन नहीं किया है।’’
राज्यपाल के कदम की विपक्ष द्वारा आलोचना पर शाह ने कहा कि विपक्ष द्वारा एक संवैधानिक पद को ‘‘राजनीति में घसीटना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है’’। शाह ने कहा, ‘‘हम गठबंधन में चुनाव लड़े थे और हम सबसे बड़ी पार्टी थे, लेकिन साथी दल ने ऐसी शर्त रखी जो हमें स्वीकार नहीं थी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरी पार्टी का ये संस्कार नहीं है कि कमरे में हुई बात को सार्वजनिक करूं, सार्वजनिक जीवन की एक गरिमा होती है ।’’
राष्ट्रपति शासन लगाने की आवश्यकता इसलिए भी पड़ी कहीं विपक्ष ये आरोप ना लगाए कि राज्यपाल भाजपा की अस्थायी सरकार को चला रहे हैं।
अब सबके पास 6महीने का समय है अगर किसी के पास बहुमत है तो राज्यपाल से मिल ले।लेकिन एक संवैधानिक पद को इस तरह राजनीति में घसीटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। pic.twitter.com/aCi4Ec6In8
— Amit Shah (@AmitShah) November 13, 2019
गौरतलब हे कि महाराष्ट्र में पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव के बाद से सरकार गठन को लेकर जारी गतिरोध के बीच मंगलवार शाम राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की रिपोर्ट पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी। राज्य में पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव के बाद कोई भी दल सरकार नहीं बना पाया है।
भाजपा और शिवसेना ने विधानसभा चुनाव साथ साथ लड़ा था और गठबंधन को बहुमत प्राप्त हुआ था। लेकिन, मुख्यमंत्री पद के मुद्दे पर मतभेद होने के चलते दोनों दल सरकार नहीं बना सके। शिवेसना इस बात पर अड़ी हुई थी कि दोनों दलों के बीच मुख्यमंत्री सहित सत्ता का 50:50 अनुपात बंटवारा हो। पार्टी ने दावा किया कि इस फॉर्मूले पर चुनाव पूर्व दोनों दलों के बीच सहमति बनी थी।
हालांकि, भाजपा ने ऐसा कोई फार्मूला तय होने से इनकार किया था। इसके बाद पार्टी ने रविवार को स्पष्ट किया था कि उसके पास सरकार बनाने लायक संख्या नहीं है। शिवसेना ने सोमवार (11 नवंबर) को दावा किया था कि राकांपा और कांग्रेस ने उसे महाराष्ट्र में भाजपा के बिना सरकार बनाने के लिये सिद्धांत रूप में समर्थन देने का वादा किया है लेकिन राज्यपाल की ओर से तय समय सीमा समाप्त होने से पहले वह समर्थन का पत्र पेश करने में विफल रही।
इस बीच, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने मंगलवार (12 नवंबर) को कहा कि कांग्रेस के समर्थन और ‘तीनों दलों के विचार-विमर्श के बिना महाराष्ट्र में सरकार नहीं बन सकती। महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में शिवसेना के पास 56 सीटें हैं जबकि राकांपा और कांग्रेस के पास क्रमश: 54 और 44 सीटें हैं। राज्य में सरकार बनाने को इच्छुक किसी भी दल या गठबंधन को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कम से कम 145 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी।