नई दिल्ली: चीन की आशाओं पर इस तरह भारत ने फेरा पानी

भारत के आयात (Import Of India) में चीन की हिस्सेदारी 13-14 प्रतिशत है. वहीं भारत द्वारा चीन को निर्यात करने अनुमानित हिस्सा लगभग 3 प्रतिशत है.

नई दिल्ली. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन (India China Rift) के बीच फिलहाल सैन्य वार्ता जारी है और दोनों पक्ष एक निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं ताकि मई में शुरू हुए गतिरोध को खत्म किये जा सके. वहीं भारत सरकार बीते 48 घंटे के भीतर एक ओर जहां 59 चीनी ऐप्स को बैन करने की अनुमति दी वहीं चाइनीज टेलिकॉम इंडस्ट्री हुवेई और जेडटीई को मिले 4जी टेंडर्स कैंसिल कर दिया. वहीं भारत अब तैयारी कर रहा है कि हाईवे प्रोजेक्ट्स से भी चीन को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके. इसमें जॉइंट वेंचर रूट्स भी शामिल हैं.

चीन की प्रमुख तकनीकी कंपनियां जैसे बाइटडांस, अलीबाबा, टेनसेंट और Baidu पर बैन करने वाले सरकार के फैसले को सैन्य विवाद का जवाब माना गया. ये वो कंपनियां हैं चीन द्वारा उसकी ताकत बढ़ाने की महत्वाकांक्षा पूरा करने में खास मदद कर रही थीं. भारत सरकार की नीति इन कंपनियों की उस सफलता के लिए खतरा है जो मोबाइल के बढ़ रहे दायरे के कारण इन्हें लंबे समय तक मिली.

भारत सरकार के निर्णय का जियोपॉलिटिकल असर भी!
चीन ने अपने देश में वैश्विक इंटरनेट के पर रोक लगाना सालों पहले ही लगाना शुरू कर दिया था, ताकि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसे सिलिकॉन वैली के दिग्गजों को रोका जा सके. इसने एक नियंत्रित वातावरण तैयार किया, जिसमें चीन की कंपनियां फली-फूलीं और कम्युनिस्ट पार्टी को ऑनलाइन बातचीत पर कड़ी पकड़ रखने में मदद मिली. भारत सरकार के निर्णय का जियोपॉलिटिकल असर भी होंगे क्योंकि यह फैसला ऐसे वक्त में लिया गया है जब जब संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों में कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में लोग संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं.

तनाव के कारण चीनी स्मार्टफोन और टेलीकॉम उपकरण की दिग्गज कंपनी हुआवेई को भारी झटका लगा है, जिसे आरोपों के बाद अमेरिकी प्रौद्योगिकी सप्लायर्स से सप्लाई बंद हो गई. उस पर आरोप लगाया गया कि हुआवेई साइबर स्पेस में बीजिंग का ट्रोजन हॉर्स है.

भारत भी अब अपने 4 जी नेटवर्क के अपग्रेडेशन और खासतौर से 5 जी नेटवर्क के लिए चीन की टेलिकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर वाली कंपनियों को बैन करना चाहता है. कई अन्य देश भी ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चीनी विस्तार को नियंत्रित करने के संकेत दे रहे हैं. भारत के फैसले से एक प्रवृत्ति की शुरुआत हो सकती है.

सीमा पर तनाव और व्यापार, दोनों एक साथ नहीं चल सकते
फिर भी चीन फार्मास्यूटिकल या अन्य इंडस्ट्रीज के जरिए थोड़ा परेशान कर सकता है. चीन यहां व्यापार असंतुलन का लाभ उठा सकता है. चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पिछले साल लगभग 57 बिलियन डॉलर था और यह आंकड़ा पिछले छह वर्षों में ही बढ़ा है. इसके अलावा चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पिछले साल लगभग 57 बिलियन डॉलर था और यह आंकड़ा पिछले छह वर्षों में ही बढ़ा है। इसके अलावा, भारत चीन के लिए उतने मायने नहीं रखता जितना कि हमारे .

जबकि भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी 13-14 प्रतिशत है. वहीं भारत द्वारा चीन को निर्यात करने अनुमानित हिस्सा लगभग 3 प्रतिशत है. हालांकि चीनी कंपनियों को बंद करने के निर्णय के साथ टेलिकॉम और नेशनल हाईवे सेक्टर में भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए मानदंडों में छूट भी महत्वपूर्ण है. भारत अब इंपोर्ट का सब्स्टिट्यूट और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेतर में बढ़ते कंपटिशन से जुड़ी लॉन्गटर्म पॉलिसी बना रहा है. सरकारी अधिकारियों का बीजिंग का स्पष्ट संदेश है कि सीमा पर तनाव और व्यापार, दोनों एक साथ नहीं चल सकते.

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