भाजपा मिशन 2020: क्या बिहार में अलग लग राह होगी बीजेपी और नितीश बाबू की

जेडीयू के नेतृत्व वाली बिहार सरकार में जूनियर पार्टनर भाजपा को पहली बार ऐसा लग रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव में वह सीनियर पार्टनर बन सकती है

बिहार विधानसभा चुनावों में साल भर से थोड़ा अधिक का समय है. 2020 के अक्टूबर-नवंबर में होने वाले इन चुनावों को लेकर बिहार में विपक्षी दलों में जहां कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से इन चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई हैं. भाजपा संगठन के भीतर कई स्तर पर इनकी रणनीति बनाई जा रही है.

बिहार भाजपा के नेताओं से बातचीत करने पर इस संबंध में कई बातें पता चलती हैं. नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के नेतृत्व वाली सरकार में जूनियर पार्टनर होने के बावजूद भाजपा को बिहार में पहली बार ऐसा लग रहा है कि वह अगले विधानसभा चुनावों में जेडीयू की सीनियर पार्टनर बनकर उभर सकती है. 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले आम तौर पर बिहार में जब भी भाजपा और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़े हैं, जेडीयू अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी है और भाजपा को कम सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर मिला है. इस वजह से हमेशा जेडीयू के नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद पर रहे. भाजपा को सुशील कुमार मोदी के रूप में उपमुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा.

लेकिन अब बिहार भाजपा के साथ-साथ राष्ट्रीय भाजपा को यह लग रहा है कि 2020 में वह अवसर आ सकता है जब भाजपा बिहार में अपना मुख्यमंत्री बना सके. भाजपा के अंदर चल रही इस बात के पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं. पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और जेडीयू दोनों 17-17 सीटों पर चुनाव लड़े थे. इनमें से भाजपा को सभी 17 सीटों पर जीत हासिल हुई. जबकि जेडीयू को भाजपा से एक कम 16 सीटें मिलीं. भले ही विधानसभा में हमारी सीटें जेडीयू के मुकाबले कम हों लेकिन लोकसभा की सीटों से पता चलता है कि साथ चुनाव लड़ने के बावजूद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.’

2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी के अलग-अलग नेताओं से बात करने के बाद भाजपा की रणनीति के बारे में कुछ बातें समझ में आती हैं. भाजपा नेताओं को लगता है कि जब विधानसभा चुनावों के लिए सीटों के बंटवारे की बात आएगी तो यह व्यावहारिक नहीं होगा कि पार्टी जेडीयू के मुकाबले अधिक सीटें मांगे. ऐसे में भाजपा की कोशिश यह होगी कि दोनों पार्टियां बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ें. नीतीश कुमार ने यही फाॅर्मूला 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के साथ भी अपनाया था और 2015 के विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ भी. इसलिए विधानसभा चुनावों के लिए बराबर-बराबर के फाॅर्मूले पर नीतीश कुमार के सहमत होने की काफी संभावनाएं हैं.

भाजपा की योजना यह है कि बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की स्थिति में भाजपा जेडीयू के मुकाबले अधिक सीटें जीतने की कोशिश करे. अगर कोई ऐसी स्थिति बन जाती है कि वह 2020 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू से बड़ी पार्टी बनकर सामने आ जाए तो इस आधार पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उसका स्वाभाविक दावा बन जाएगा.

लेकिन प्रदेश भाजपा नेताओं का कहना है कि इसमें भी एक पेंच है. उनके मुताबिक मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पास रखने की कोशिश में नीतीश कुमार चाहेंगे कि चुनावों के पहले ही उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए. ऐसा कराने का लाभ उन्हें 2015 में मिला था. महागठबंधन की ओर से उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कराया. जब चुनावी नतीजे आए तो बता चला कि लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इसके बावजूद पहले से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित होने की वजह से लालू यादव ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने दिया.

हालांकि, भाजपा में चर्चा यह है कि 2020 के विधानसभा चुनावों के पहले नीतीश कुमार को एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया जाएगा. राष्ट्रीय भाजपा में भी इस बात पर सहमति है. पार्टी नेताओं का कहना है कि उन्हें कहा जाएगा कि वे जेडीयू की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो जाएं और सभी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ें. आंतरिक स्तर पर यह सहमति रहे कि मुख्यमंत्री पद का फैसला चुनाव जीतने के बाद हो.

लेकिन तब क्या होगा कि जब जेडीयू की सीटें भाजपा के मुकाबले अधिक आ जाएंगी? क्या ऐसी स्थिति में बिहार में भाजपा के सामने अपना मुख्यमंत्री देखने का सपना पूरा करने की भी कोई रणनीति है? इसके जवाब में बिहार भाजपा के एक नेता कहते हैं, ‘अगर जेडीयू को भाजपा के मुकाबले थोड़ी अधिक सीटें मिल जाती हैं तो भी बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. लेकिन फिर इसके लिए एनडीए के तीसरे साझीदार रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी की भूमिका अहम हो जाएगी. हमें तो पूरा विश्वास है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी. और इसमें तो किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि भाजपा और एलजेपी दोनों की सीटें मिलाकर किसी भी कीमत पर जेडीयू से अधिक होंगी. तो फिर खेल यह होगा कि मुख्यमंत्री पद के लिए रामविलास पासवान किसका साथ दे रहे हैं.’

ऐसी स्थिति में भाजपा को उम्मीद है कि रामविलास पासवान उसी का साथ देंगे. इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से लगातार रामविलास पासवान भाजपा के साथ बने हुए हैं. नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार में पहले दिन से वे कैबिनेट मंत्री हैं. इस बार भी जब कुछ सहयोगी दलों को मंत्री पद नहीं दिया गया तो भी छह सांसदों वाली एलजेपी की ओर से उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया.

कुछ राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि अगर बिहार में भाजपा के मुख्यमंत्री को समर्थन देने की बात आती है तो रामविलास पासवान संभवतः भाजपा के साथ यह समझौता करें कि उनके बेटे चिराग पासवान के लिए भी केंद्र सरकार में कोई भूमिका तय हो जाए. वे चाहेंगे कि राज्य मंत्री के तौर पर ही सही चिराग पासवान केंद्र सरकार में आ जाएं. साथ ही एलजेपी बिहार सरकार में भी अपनी थोड़ी और बड़ी भूमिका की मांग कर सकती है. भाजपा को भी एक बड़े प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए इस शर्त को स्वीकार करने में कोई खास दिक्कत नहीं होगी.

वैसे 2020 में बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने की पार्टी की यह योजना धरातल पर कितनी उतरती है, इसके लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा. इसलिए क्योंकि नीतीश कुमार भी अपनी सूझबूझ वाली सियासत के लिए जाने जाते हैं और पिछले 14 सालों से वे कभी भाजपा के साथ तो कभी आरजेडी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री पद लगातार बने हुए हैं. ऐसा नहीं है कि 2020 के खतरों को वे नहीं भांप रहे होंगे लेकिन वे भाजपा की इस योजना को नाकाम बनाने के लिए क्या करेंगे, यह अभी देखा जाना है.

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