भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को कहा कि केंद्रीय बैंक ने समय से पहले ही आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ने की स्थिति को भांप लिया था और यही वजह है कि उसने सुस्ती शुरू होने से पहले ही फरवरी से नीतिगत ब्याज दर में कटौती शुरू कर दी थी। उन्होंने रेपो दर में कटौती के सिलसिले को विराम देने के फैसले को लेकर बाजार में व्यक्त की जा रही हैरानी पर आश्चर्य जताया।
दास ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था पर सूचनाओं और आंकड़ों के आधार पर चर्चा करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक आर्थिक नरमी , मुद्रास्फीति में वृद्धि , बैंकों और एनबीएफसी की वित्तीय हालत को दुरुस्त करने के लिए जो भी जरूरी होगा वह कदम उठाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई है कि व्यापार शुल्क पर अमेरिका – चीन का युद्ध अब थम जाएगा। सप्ताहांत इसकी घोषणा की गई उसे देखते हुये यह उम्मीद जगी है। उन्होंने वैश्विक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए 2008 के आर्थिक संकट की तरह इस बार भी मिलकर प्रयास करने की वकालत की है।
टाइम्स समूह के इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव कार्यक्रम में दास ने कहा, “सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ने समय पर कदम उठाए। आरबीआई के संबंध में , मैं कह सकता हूं कि हमने नीतिगत दर में कटौती करके समय से पहले कदम उठाया। इस साल फरवरी की शुरुआत में आरबीआई ने यह भांप लिया था कि आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुस्त हो रही है , हमने देखा कि वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ने की गति बढ़ रही है , इसलिए हमने फरवरी से ही रेपो दर में कटौती करना शुरू कर दिया।”
उन्होंने कहा कि फरवरी में आरबीआई के नीतिगत ब्याज दर में कटौती के फैसले से बाजार हैरान था। मुझे आश्चर्य है कि अब दरों में कटौती को रोकने के फैसले पर भी बाजार हैरान दिख रहा है। दास ने कहा, “पिछली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में जब हमने नीतिगत दर को पूर्वस्तर पर बरकरार रखा तो मुझे नहीं पता कि बाजार ने क्यों इस पर हैरानी जताई। इस बार … मुझे उम्मीद है घटनाक्रम कुछ इस तरह से सामने आएंगे जो यह साबित करेंगे कि एमपीसी का फैसला सही था।”
उन्होंने कहा कि आरबीआई ने बैंकों और नकदी संकट से जूझ रहे एनबीएफसी क्षेत्र की मदद के लिए कई नीतियां पेश की हैं। गवर्नर ने कहा कि रिजर्व बैंक आर्थिक नरमी , मुद्रास्फीति में वृद्धि को दुरुस्त करने तथा बैंकों और एनबीएफसी की बेहतर वित्तीय स्थिति सुनिश्चित करने के लिए “जो भी जरूरी हो” वो करेगा। दास ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से बुनियादी ढांचे में निवेश करना आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए अहम है। भारत को विनिर्माण क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने भारतीय कंपनियों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनने के लिए कहा है ताकि निर्यात को बढ़ाया जा सके।
रिजर्व बैंक द्वारा किए गए 1,539 कंपनियों के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए दास ने कहा कि निवेश चक्र में सुधार के संकेत दिखने शुरू हो गए हैं। भविष्य में आर्थिक वृद्धि का समर्थन करने के लिए बैंकों, कंपनियों और एनबीएफसी में बहीखाता की सफाई की प्रक्रिया चल रही है। वैश्विक आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए सभी विकसित और उभरती अर्थव्यस्थाओं द्वारा “समन्वित और समयबद्ध” तरीके से कदम उठाने की आवश्यकता है। देश में आर्थिक नरमी के लिए वैश्विक कारक पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं है यह स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वैश्विक वृद्धि की दर ऊंची बनी रहने से भारत जैसे देशों की मदद होगी।