रूस ने 6500 किलोमीटर दूर आर्कटिक क्षेत्र के बीचोंबीच परमाणु संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है। इसे बहुत जल्द अंजाम देने के लिए वह एटमी संयंत्र को जहाज पर लादकर समुद्री रास्ते से वहां ले जाएगा। एकेडमिक लोमोनोसोव नामक इस संयंत्र को ग्रीनपीस इंटरनेशनल ने ‘तैरती तबाही’ कहा है, जबकि दुनिया के कई देश पुतिन सरकार के इस कदम को जोखिम भरा बता रहे हैं। रूस इस परमाणु संयंत्र को ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत कहता है जिसका इस्तेमाल वह उचित कामों के लिए करेगा। लेकिन ज्यादातर पर्यावरणविदों ने भी इसे तबाही बताया है। रूस में यह योजना दो दशक पहले बनी थी, लेकिन पुतिन की आर्कटिक विस्तार योजना लांच होते ही संयंत्र निर्माण में तेजी आई और मात्र दो साल में इसे तैयार कर लिया गया।
फिलहाल यह संयंत्र 472 फीट लंबे एक प्लेटफॉर्म पर रखा गया है। जल्द ही इसे आर्कटिक से लगे पेवेक बंदरगाह से आर्कटिक के लिए रवाना कर दिया जाएगा। संयंत्र को आर्कटिक में कब स्थापित किया जाएगा, रूस की तरफ से इसको लेकर कोई तारीख नहीं बताई गई।
पर्यावरण के जानकारों का मानना है कि आर्कटिक एक बेहद स्वच्छ जगह है, जहां परमाणु संयंत्र ले जाने से खतरा काफी बढ़ जाएगा। इस इलाके में किसी भी तरह की उथल-पुथल मचने पर समुद्र के रास्ते पूरी दुनिया पर रेडिएशन का बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसी कारण ग्रीनपीस इंटरनेशनल ने समुद्र के रास्ते एटमी संयंत्र को आर्कटिक ले जाने का भी पुरजोर विरोध किया है।
आर्कटिक में तेल-गैस का खजाना ढूंढेगा रूस
पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि वह रूस और उसके आसपास के खाली क्षेत्र को आर्थिक तौर पर आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए वे आर्कटिक की गहराई में मौजूद तेल और गैस के खजाने को ढूंढेंगे। एटमी प्लांट के जरिए इनकी खोज में लगी कंपनियों को बिजली की सप्लाई की जाएगी। फिलहाल रूस के आर्कटिक से लगे क्षेत्र में सिर्फ 20 लाख लोग रहते हैं, लेकिन यहां से देश का 20 फीसदी जीडीपी आता है।