सुप्रीम कोर्ट: आखिर 130 साल पुरानी विरासत को लेकर आपस में क्यों भिड़े किर्लोस्कर ब्रदर्स

एक सदी पुराने किर्लोस्कर ग्रुप की संपत्ति से संबंधित पारिवारिक समझौते पर विवाद तब शीर्ष अदालत में पहुंच गया जब संजय किर्लोस्कर ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की.

सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (KBL- Kirloskar Brothers Limited) द्वारा एक अपील में प्रतिवादी बनाए गए उद्योगपति अतुल चंद्रकांत किर्लोस्कर और 13 अन्य लोगों से संपत्ति से संबंधित पारिवारिक विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता के मुद्दे पर अपनी राय से अवगत कराने को कहा.

केबीएल ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें संपत्ति मामले में मध्यस्थता का निर्देश दिया गया था. शीर्ष अदालत ने 27 जुलाई को मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था और इसमें शामिल पक्षों से मध्यस्थता की संभावना तलाशने को कहा था. संजय किर्लोस्कर केबीएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं.

न्यायधीशों की पीठ ने वकीलों से मांगी राय

मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने मध्यस्थता के मुद्दे पर किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड की ओर से पेश ए. एम. सिंघवी और श्याम दीवान सहित वरिष्ठ वकीलों की दलील पर गौर किया तथा अतुल चंद्रकांत किर्लोस्कर तथा अन्य के वकील से इस मामले पर अपने विचार रखने को कहा.

पीठ को अवगत कराया गया कि कुछ पक्ष उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ​​द्वारा मध्यस्थता के लिए सहमत हैं और यह कहा गया कि सभी कंपनियां, जो अदालती कार्यवाही में पक्षकार नहीं हैं, उन्हें भी मध्यस्थता का हिस्सा होना चाहिए.

बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुनवाई को तैयार हुआ था सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई की शुरुआत में, सिंघवी ने कहा कि यदि सभी कंपनियां और व्यक्ति परिणाम को लेकर जवाबदेह नहीं हैं तो मध्यस्थता एक निरर्थक कवायद होगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे में उसे कुछ अंतरिम आदेश पारित करने पड़ सकते हैं क्योंकि ‘‘निष्पक्षता’’ होनी चाहिए और किसी भी पक्ष को अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए. दलीलों को दर्ज करते हुए पीठ ने वकील से मध्यस्थता पर निर्देश लेने को कहा.

पीठ 12 नवंबर को संपत्ति मामले में मध्यस्थता का निर्देश देने वाले बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई थी. इससे पहले, शीर्ष अदालत ने किर्लोस्कर बंधुओं संजय और अतुल को संपत्ति से जुड़े पारिवारिक विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की संभावना तलाशने को कहा था.

एक सदी पुराने किर्लोस्कर समूह की संपत्ति से संबंधित पारिवारिक समझौते पर विवाद तब शीर्ष अदालत में पहुंच गया जब संजय किर्लोस्कर ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की. अपील में, यह दलील दी गई कि उच्च न्यायालय का आदेश तथ्यात्मक और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है और गलत तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचा गया.

क्या है किर्लोस्कर बंधुओं के बीच छिड़ा विवाद

किर्लोस्कर बंधुओं में छिड़ा यह विवाद विरासत से जुड़ा है. किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (KBL) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक संजय किर्लोस्कर ने अपने भाइयों अतुल किर्लोस्कर और राहुल किर्लोस्कर पर आरोप लगाया है कि उनकी चार कंपनियां किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड की 130 साल पुरानी विरासत को छीनने के साथ-साथ जनता को गुमराह करने की कोशिशें कर रही हैं. वहीं दूसरी ओर, अतुल और राहुल ने संजय के आरोपों को गलत बताया है.

बताते चलें कि इस साल जुलाई महीने में संजय के भाई अतुल और राहुल ने अपनी पांच कंपनियों के लिए कुछ बड़े ऐलान किए थे. अतुल और राहुल ने अपने बिजनेस को नई शुरुआत देने के लिए नई ब्रैंडिंग और नए रंगों के इस्तेमाल की घोषणा की थी. इतना ही नहीं, अतुल और राहुल ने अपनी कंपनियों को नई पहचाना देने के लिए किर्लोस्कर का नया लोगो भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था.

अतुल और राहुल ने अपनी कंपनियों को बताया 130 साल पुरानी विरासत का हिस्सा!

अतुल और राहुल ने अपनी कंपनियों को नई शुरुआत और पहचान देने के लिए इस्तेमाल में लाए गए नए रंगों, लोगो, ब्रैंडिंग को लेकर कहा था कि ये रंग उनकी कंपनी के 130 साल पुरानी विरासत का प्रतीक हैं. बस फिर क्या था, यहीं से सारा विवाद शुरू हो गया. संजय किर्लोस्कर की केबीएल ने अतुल और राहुल के इस कदम के खिलाफ शिकायत कर दी.

केबीएल ने सेबी को एक पत्र लिखा और अपने भाइयों अतुल-राहुल पर आरोप लगाए कि उनकी कंपनियों- केपीसीएल (1974), केआईएल (1978), केएफआईएल (1991) और केओईएल (2009) की स्थापना केबीएल की स्थापना से कई साल बाद हुई है. लिहाजा, ये उनकी 130 साल पुरानी विरासत नहीं है.

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