भारत में जीवन के सभी रहस्यों को प्रतीकों में गूँथा गया है। प्रत्येक प्रतीक अपने आप में अनूठा है । इन्हीं प्रतीकों की श्रंखला में 108 सबसे महत्वपूर्ण है। 108 को सर्वाधिक महत्वपूर्ण पवित्र संख्या माना गया है। इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण है ।उन कारणों में से एक महत्वपूर्ण कारण गणित को हिन्दू धर्म में दिया गया महत्व हैं .
गणित केवल मापन या संख्या का ही नहीं अभिव्यक्ति का भी एक माध्यम है उदाहरण के लिए बायनरी लैंग्वेज । सृष्टि या सृजन की अपनी भाषा गणित स्वयं है। प्रकृति अपने को अभिव्यक्त करने के लिए गणित का सहारा लेती है। सृष्टि में सब कुछ गणितीय अनुपात में हैं और यहां अव्यवस्थित, असंगत कुछ भी नहीं। विज्ञान भी कहता हैं की मनुष्य ने गणित का आविष्कार नहीं किया हैं बल्कि उसे खोजा हैं . गणित सृष्टि और प्रकृति में पहले से ही अस्तित्व में हैं .
इसी गणित को हमारे ऋषियों ने गहन अध्ययन व साधना से समझा हैं व उन्होंने गणित के क्षेत्र में कई अभूतपूर्व खोजे की . हमारे श्रेष्ठ गणितज्ञ या तो ऋषि थे या ऋषि ही श्रेष्ठ गणितज्ञ थे. आर्यभट्ट, याज्ञवल्क्य, बोधायन , कात्यायन , वराहमिहिर आदि कई नाम गणित के प्रति समर्पित अध्यात्मिक व्यक्तियों के हैं .
आधुनिक भारत के महान गणितज्ञ श्री निवास रामानुजन के नाम के साथ ही उनकी कुलदेवी का भी नाम लिया जाता है। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। रामानुजन के कार्य करने की एक विशेषता थी। पहले वे गणित का कोई नया सूत्र या प्रमेंय पहले लिख देते थे लेकिन उसकी उपपत्ति पर उतना ध्यान नहीं देते थे। इसके बारे में पूछे जाने पर वे कहते थे कि यह सूत्र उन्हें नामगिरी देवी की कृपा से प्राप्त हुए हैं। रामानुजन का आध्यात्म के प्रति विश्वास इतना गहरा था कि वे अपने गणित के क्षेत्र में किये गए किसी भी कार्य को आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे। वे धर्म और आध्यात्म में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। वे कहते थे कि “मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।”
तो गणित अध्यात्मिक रहस्यों की कुंजी की तरह हिन्दू धर्म में कार्य कर रहा हैं और हर अंक महत्वपूर्ण हैं और गणना का विशेष प्रयोग धर्म के हर अंग में होता रहा . जैसे काल गणना, मुहूर्त गणना , सम या विषम संख्या का आग्रह रखना।
हम राशी में १०१ , १२१ जेसे अंको को महत्व देते हैं और विभिन्न रीतियों और नियमों के साथ अंको या गणित को साथ में ले कर चलते हैं . इन्हें कई आध्यात्मिक प्रतीकों में उपयोग किया गया और लगभग हर अंक को अपना महत्व दिया जैसे –
1 – ईश्वर या प्रारम्भ
2 – जीव व ब्रह्म ,
3 – तीन लोक , त्रिदेव, त्रिदेवियाँ, त्रिगुण, त्रिकाल
4- चतुर्युग, चार पुरुषार्थ, चार वेद
5 – पंच परमेश्वर ( देव पंचायतन ) ,पंचतत्व, पांच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पञ्च मकार
6- षडरस
7- सप्त लोक , सप्त सुर , सप्त पुरियां , सप्त ऋषि
8- अष्ट दिशाएँ , अष्टांग योग , अष्ट सिद्धि , अष्ट धातु
9- नव रात्र , नव दुर्गा , नव ग्रह
इसी श्रंखला में शीर्ष पर १०८ का दिव्य, पवित्र या जादुई अंक विराजमान हैं . इस अंक को समझने से पहले हम १, ० और 8 के अंक को समझते हैं .
8 के अंक को माया का प्रतीक माना जाता हैं . माया को सदैव आठ के अंग के साथ दर्शाया जाता हैं , सोचने की बात हैं की आठ ही क्यों ?
8 को 1 , 0 और 9 के अतिरिक्त किसी भी अंक गुणा करो मूल परिणाम हमेशा घट कर आएगा .
उदा. – 8 * 2 = 16 . ( 1 + 6 = 7 )
8 * 3 = 24 . ( 2 + 4 = 6 )
8 * 4 = 32. ( 3 + 2 = 5 )
8 * 5 = 40 . ( 4 + 0 = 4 )
8* 25 = 200 . ( 2 +0+ 0 = 2 )
दिखाई बढ़त देती हैं पर पर मूल अंक घट गया होता हैं . माया का भी यही स्वभाव बताया गया हैं की जो दिख रहा हैं वो हैं नहीं और जो हैं वो दिख नहीं रहा हैं . माया सदैव भ्रम की रचना करती हैं.
108 का योग करने पर हमें 9 की संख्या मिलती हैं .
1 + 0 + 8 = 9
9 को पूर्णांक कहते हैं , सर्वाधिक बड़े मूल्य का एकल अंक . 9 को ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक कहते हैं . माता आदि शक्ति को स्रष्टि की रचना शक्ति कहा गया हैं जो पूर्ण और अखंड हैं .
पूर्णांक 9 को जब हम अन्य अंको से गुणा करते हैं तो परिणाम हमेशा 9 ही आता हैं .
9 * 2 = 18 . ( 1 + 8 = 9 )
9 * 3 = 27 . ( 2 + 7 = 9 )
9 * 4 = 36 . ( 3 + 6 = 9 )
9 * 5 = 45 . ( 4 + 5 =9 )
9 * 25 = 225 . ( 2 +2 +5 =9 )
ईश्वर को किसी से भी गुणा करो , परिणाम हमेशा ईश्वर ही होता हैं और ईश्वरीय शक्ति किसी भी परिस्थितियों में अपने मूल स्वभाव में ही स्तिथ रहती हैं .
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते। (ईश उपनिषद)
मन्त्र का अर्थ: वह जो (परब्रह्म) दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया।
यही नियम शून्य पर भी लागु होते हैं , शून्य अपना स्वभाव नहीं बदलता और पूर्ण ही रहता हैं .
इसलिए पूर्ण के दो प्रकार 108 के अंक में हमारे पास हैं ।
पूर्णता 0 और पूर्णांक 9 .
108 का अंक ईश्वरीय पूर्णता, सृष्टि की रचना और जीवन का प्रतीक हैं .
108 का अंक हमारे ब्रह्माण्ड की रचना के सिद्धांत BIG BANG THEORY का भी सूत्र हैं .
उपनिषद कहते हैं की ब्रह्मांड एक प्रोजेक्शन के समान हैं जिसका संकुचन और प्रसार पुनः पुनः होता हैं तो 108 वो प्रतीक हैं जो असंख्य बार ब्रह्माण्ड के विस्तार और पुनः संकुचन अर्थार्थ प्रलय को दर्शाता हैं .
एक बात और यहाँ गोरतलब हैं की ब्रहमांड एक निरंतर प्रसारित होती हुई रचना हैं जैसे कोई गुब्बारा जो फूलता ही जा रहा हैं, एक तारा दुसरे तारे से निरंतर दूर जा रहा हैं और यह कितना अभी और फैलेगा इसका हमारे वेज्ञानिकों के पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं हैं इसलिए इसे EXPANDING UNIVERSE कहते हैं .
हम संस्कृत में इसे वैदिक काल से ही ब्रहमांड कहते आयें हैं ब्रह्म शब्द का अर्थ ही निरंतर होता हुआ असीमित विस्तार हैं, ब्रह्माण्ड से अर्थ एक ऐसे अंड से हैं जो सभी दिशाओं में निरंतर प्रसारित हो रहा हैं .
अब 108 के अंक में इस विस्तार का भी सूत्र छुपा हुआ हैं .
1 = उस विलक्षणता का प्रतिनिधित्व करता हैं , जो इस ब्रह्माण्ड का बीज हैं या जिससे यह ब्रह्माण्ड फेला था .
0 = अनगिनत संख्या में से वर्तमान ब्रह्माण्ड का अंड (प्रतीक )
8 = अनंतता या 8 दिशाओं में विस्तार की सीमा , जहाँ से संकुचन प्रारम्भ होगा .
इसके अतिरिक्त भी हम इस अंक की विलक्षणता और अस्तित्व को कई जगह पर देख सकते हैं .
ज्योतिष के अनुसार के 27 नक्षत्र में से प्रत्यक के 4 चरण होते हैं . 27 * 4 = 108
12 राशियाँ 9 ग्रहों से प्रभावित होती हैं 12 * 9 = 108
पृथ्वी और सूर्य के बीच की दुरी सूर्य के व्यास से 108 गुणा हैं .
पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दुरी चन्द्र के व्यास से 108 गुणा हैं.
सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास से 108 गुणा बड़ा हैं .
वैदिक परम्परा में 108 उपनिषद
तांत्रिक परम्परा में 108 शक्तिपीठ
वैष्णव परम्परा में 108 देवस्थानम
शैव परम्परा में 108 शिवांग
बौद्ध परम्परा में 108 चिन्ह बुद्ध के चरण पर
जैन परम्परा में 108 पवित्रों के समूह
सिक्ख परम्परा में 108 की ऊन की माला
सनातन परम्परा की अनुवर्ती शाखाओं बौद्ध , सिक्ख व ताओं आदि सभी पंथ की माला में 108 मनके
योग परम्परा में 108 नाड़ियाँ ह्रदय चक्र से सहस्त्रार तक जाती हैं
कला में 108 नृत्य मुद्राएँ व विधाएँ
ध्यान पध्तियाँ 108 प्रकार की
शरीर 108 दबाव बिंदु ( मर्म चिकित्सा , मार्शल आर्ट, एक्यूप्रेशर)
संस्कृत वर्ण माला में 108 वर्ण , 54 अक्षर स्त्री लिंग और 54 अक्षर पुरुष लिंग के
श्री यंत्र में 108 बिंदु , 54 बिंदु शिव और 54 बिंदु शक्ति के
5 + 1 = 6 इन्द्रियां ( कान – श्रवण , नेत्र – द्रश्य , नासिका – घ्राण, जिह्वा -रस , त्वचा-स्पर्श , मन – विचार ) 3 काल – भूत , वर्तमान और भविष्य , 2 स्तिथि – जीव और ब्रह्म , 3 प्रकार की भावनाएं – राग, द्वेष और तटस्थ ( वीतराग )
6 *3 *2 *3 = 108
जप माला में 108 अंक आत्मा की 108 स्तिथियों की यात्रा और अनंतता का प्रतीक भी हैं और जप माला में एक मनका अलग से होता हैं जिसे सुमेरु कहते हैं .यह सुमेरु ईश्वर का प्रतीक हैं की उन्ही से जीवन यात्रा प्रारम्भ होती हैं और उन्ही पर पूर्ण इसलिए जप करते समय कभी भी सुमेरु का उल्लघन नहीं किया जाता हैं .
सुमेरु की भिन्नता यह भी दर्शाती हैं की ईश्वर जीवों से भिन्न अपने आप में पूर्ण और एक ही हैं .
108 अनंतता का सबसे बड़ा प्रतीक हैं और ईश्वर की अनंतता को हम 108 के रूप में स्मरण रखते हैं
जब किसी को अत्यधिक सम्मान देना होता हैं तो भी हम 108 श्री का प्रयोग करते है , इसका अर्थ यही है की वे अनंत श्री से युक्त हैं .
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Manju Gupta, R.K Sharma, Shachi Kant, और 127 अन्य लोगों ने इसे अपवोट किया
अश्वनी शर्मा (Aswani Sharma)
अश्वनी शर्मा (Aswani Sharma)
भुवनेश्वरी जी 1008 संख्या का महत्व भी जानना चाहता हूं। कई मंत्र है है जिनका 1008 बार जाप करने को …
केदारनाथ दास (Kedarnathdas Das), रोहिताश कुमार रोहित (Rohit) और अन्य लोगों से 9 और टिप्पणियाँ
सन्दीप कुमार (Sandeep Chhimpa)
सन्दीप कुमार (Sandeep Chhimpa), शिक्षा विभाग राजस्थान में शिक्षक (2012 – अभी तक)
शुक्रवार को जवाब दिया
मंत्र को 108 बार पढ़ने की सलाह हमारी सांसों के आधार परदी जाती है, क्योंकि 24 घंटे में 21 हजार 600 बार हम साँस लेते हैं। लेकिन हमारी दिनचर्या 12 घंटे की ही होती है अर्थात 10 हजार 800 सांसों के नाम पर 108 दाने बनाए गए ताकि एक दाने के लिए 100 सेकेण्ड का समय माना गया है पूजा के लिए।
108 एक आध्यात्मिक पूर्ण ब्रह्म अंक है। स32+ई4+त16+आ2=54। र27+आ2+म25=54। दोनों मिलकर 108 बनते हैं। यह हिंदी भाषा में क से एक गिनें फिर अ से एक गिने। सभी की कोशिश यही रहती है कि अपने को ब्रह्म में सम्मिलित करके रहें, बाकि कितना वे ब्रह्म में ऐड्ड हैं ये वही जाने। पूर्ण ब्रह्म परमात्मा सीताराम ही हैं।