आज है मार्च का दूसरा प्रदोष व्रत-ब्रह्म मुहूर्त में ऐसे करें भोलेनाथ की पूजा-पढ़ें शुक्र प्रदोष व्रत कथा

हर माह दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है। इस माह का दूसरा प्रदोष व्रत 26 मार्च 2021 (शुक्रवार) है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 26 मार्च को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी है। शुक्रवार को प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान शिव की प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सूर्य व चंद्रमा का समय-

सूर्योदय- 06:06 AM
सूर्यास्त-06:23 पी एम PM
चन्द्रोदय- 03:54 AM
चन्द्रास्त- 05:15 AM, मार्च 27

प्रदोष व्रत के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त-

ब्रह्म मुहूर्त- 04:31 ए एम, मार्च 27 से 27 मार्च 05:18 ए एम तक।
अभिजित मुहूर्त- 11:50 ए एम से 12:39 पी एम तक।
विजय मुहूर्त-    02:17 पी एम से 03:06 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:10 पी एम से 06:34 पी एम तक।
अमृत काल- 07:22 पी एम से 08:54 पी एम तक।
निशिता मुहूर्त- 11:50 पी एम से 27 मार्च 12:37 ए एम तक।

प्रदोष व्रत के दिन बन रहे ये अशुभ मुहूर्त-

राहुकाल- 10:42 ए एम से 12:14 पी एम तक।
यमगण्ड- 03:19 पी एम से 04:51 पी एम तक।
गुलिक काल- 07:38 ए एम से 09:10 ए एम तक।
दुर्मुहूर्त- 08:33 ए एम से 09:23 ए एम तक।
वर्ज्य- 10:14 ए एम से 11:46 ए एम तक।
गण्ड मूल- 06:06 ए एम से 09:40 पी एम तक।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि-

1. स्नान आदि के बाद भगवान शिव का अभिषेक करें।
2. पंचामृत का पूजा में इस्तेमाल करना चाहिए।
3. भगवान शिव की धूप व दीपक से आरती करें।
4. महादेव को भोग लगाएं।
5. प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
6. प्रदोष व्रत के दिन व्रत व नियमों का पूरे दिन पालन करें।
7. शाम को महादेव की पूजा करने के बाद आरती उतारें।
8. अगले दिन व्रत का पारण करें।

प्रदोष व्रत की कथा

कहा जाता है कि क नगर में तीन मित्र रहते थे। राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकि गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है। धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया। ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद ति-पत्‍नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई।

दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकूओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। और कहा कि इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया जहां उसकी हालत ठीक होती गई। यानि शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।

 

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