बलूचिस्तान की आजादी के पक्ष में अमेरिका में भी छिटपुट आवाजें उठनी लगी हैं. एक वरिष्ठ अमेरिकी सांसद ने शुक्रवार को यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि अमेरिका को बलूचियों और पाकिस्तान में दमन में शिकार लोगों का समर्थन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये मानवाधिकार उल्लंघन के बड़े मामले हैं और वहां के स्थानीय लोग स्वशासन का अधिकार चाहते हैं.
कांग्रेस सदस्य डाना रोहराबाकेर ने कहा कि पाकिस्तान को यह याद रखना चाहिए कि 1971 में क्या हुआ था. मानवाधिकार उल्लंघन और स्थानीय लोगों पर जुल्म के चलते ही पूर्वी पाकिस्तान उसके हाथ से निकल गया, जो बाद में बांग्लादेश के रूप में जाना गया.
खनिज संपदा से भरपूर बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन उसकी आबादी बहुत कम है. यहां बीते कई दशक से आजादी की मांग को लेकर विद्रोह के स्वर उठते रहे हैं. हालांकि पाकिस्तानी सेना बल प्रयोग के जरिए विद्रोह के इन स्वरों को दबाती रही है.
अमेरिकी सदन में प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए रोहराबाकेर ने कहा कि बांग्लादेश के लोगों ने जब पाकिस्तानी सरकार से थोड़ी आजादी चाही और अपने जीवन को अपने तरीके से नियंत्रित करने के लिए अपनी सरकार चाही, तो इस मांग को बर्बरतापूर्वक दबा दिया गया. और इसका परिणाम क्या हुआ, लोग उठ खड़े हुए बांग्लादेश के रूप में खुद को आजाद करा लिया.
उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह का दमन बलूच लोगों के साथ हो रहा है. यही नहीं बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान आए मुहाजिरों के साथ भी ऐसा हो रहा है. रोहराबाकेर ने कहा कि मुहाजिर लोग इस भ्रष्ट, आतंक समर्थक सैन्य शासन वाली पाकिस्तान सरकार के वशीभूत नहीं होना चाहते.
अमेरिकी सांसद ने आगे कहा कि हमें इन लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए जो अपनी आजादी चाहते हैं और हमारी तरह समान मूल्यों में विश्वास करते हैं. आवश्यकता इस बात कि है कि अमेरिका बलूच लोगों का समर्थन करे.
रोहराबाकेर ने आरोप लगाते हुए कहा कि बलूच लोगों पर जुल्म हो रहा है, जिन्हें पाकिस्तानियों ने अपने अंदर दबा रखा है और लगातार हत्याएं हो रही हैं. उन्होंने कहा कि ये पाकिस्तान का इतिहास रहा है. अब ये लोग बलूच और सिंधियों के साथ ऐसा कर रहे हैं. पंजाबियों और अन्य को छोड़ दिया जाए तो ऐसे बहुत सारे समूह हैं जो दमन के शिकार हैं, सिर्फ पश्तूनों को छोड़कर जो पाकिस्तान में सरकार को नियंत्रित करते हैं.