विजय दिवस : भारत के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेके, 50 साल का हुआ बांग्लादेश

साल 1971 में 16 दिसंबर को कभी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा रहा बांग्लादेश दुनिया में एक स्वतंत्र राष्ट्र बना. भारत विजयी हुआ और युद्ध में पाकिस्तान की शर्मनाक करारी और हार हुई. बांग्लादेश के गठन में भारत की बेहद अहम भूमिका रही.

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों देशों के इतिहास में 16 दिसंबर की तारीख बेहद अहम है. साल 1971 में 16 दिसंबर को कभी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा रहा बांग्लादेश दुनिया में एक स्वतंत्र राष्ट्र बना. भारत विजयी हुआ और युद्ध में पाकिस्तान की शर्मनाक करारी और हार हुई. बांग्लादेश के गठन में भारत की बेहद अहम भूमिका रही. इसके बाद भारत और बांग्लादेश में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस खास दिन के 50 साल स्वर्णिम दिवस (Golden Jubilee Year) पूरे होने पर अपने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बांग्लादेश के आधिकारिक दौरे गए हैं. आइए, इस खास दिन की पूरी पृष्ठभूमि और भारत की बड़ी भूमिका के बारे में जानते

पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के बांग्लादेश (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) में रहने वाले लोगों पर लगातार बढ़ती क्रूरता को लेकर भारत चुप और शांत नहीं रह सका था. भारत ने इसका साफ और नीतिगत विरोध किया. इसको लेकर पाकिस्तान जंग में उतरा उसका भारत के साथ भी तनाव बढ़ा. बाद में भारतीय सेना की बहादुरी के आगे पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए. इसके परिणाम में सामने आया 16 दिसंबर 1971 दिन. इस दिन इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ. पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे. हथियार जमीन पर रखे यानी आत्मसमर्पण किया था. हालांकि समझौते के बाद भारत ने उन सबको पाकिस्तान को वापस कर दिया.

ऐसे शुरू हुआ और बढ़ा था पाकिस्तान से तनाव

साल 1947 में विभाजन की वजह से भारत ने अपना दो हिस्सा खो दिया. देश से अलग होकर पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान बना. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पहले दिन से ही शिकायत थी कि उनके साथ पश्चिमी पाकिस्तान इंसाफ नहीं कर रहा. भाषा और संस्कृति यानी रहन-सहन और खानपान तक को लेकर पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ बेइंतहा जुल्म किया जाता था. पश्चिमी पाकिस्तान में रह रहे शासकों की ओर से लगातार भेदभाव के खिलाफ सुलगते गुस्से ने धीरे-धीरे प्रचंड विरोध का रूप ले लिया.

पाकिस्तान ने अचानक किया भारत पर हवाई हमला

बांग्लादेश में बनी मुक्तिवाहिनी सेना ने इस विरोध का नेतृत्व किया. 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल याहिया खान ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के विरोध को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया. पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ती इस अमानवीय सैनिक इस्तेमाल के बाद भारत पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा. बांग्लादेश को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव नवंबर आते-आते चरम पर पहुंच गया था. और फिर पाकिस्तान ने अचानक 3 दिसंबर 1971 को  5 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तानी एयरफोर्स के सैबर जेट्स और लड़ाकू विमानों से भारतीय वायु सीमा पार कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर और आगरा के मिलिट्री बेस पर बम बरसाने शुरू कर दिए. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित कर रही थीं. उनका इशारा मिलते ही भारतीय सेना ने भी पाकिस्तान पर जवाबी हमला तेज कर दिया.

93 हजार सैनिकों के साथ जनरल नियाजी ने किया सरेंडर

रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय सेना को 14 दिसंबर को पता चलता कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में दोपहर 11 बजे एक बैठक होने वाली है. भारतीय सेना ने तय किया कि गवर्नमेंट हाउस पर इस दौरान बम बरसाए जाएंगे. इंडियन एयरफोर्स के मिग-21 विमानों ने बिल्डिंग की छत उड़ा दी. तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के सेना प्रमुख जनरल नियाजी भी उस बैठक में मौजूद थे. हमले में वे बाल-बाल बचकर भागे. भारतीय वायुसेना के उस हमले के बाद पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से घुटनों पर आ गई. उसकी हिम्मत पूरी तरह टूट गई. उसको अपनी गलती और ताकत दोनों का अच्छे से एहसास हो गया था. इसके ठीक दो दिन बाद ही 16 दिसंबर 1971 को शाम करीब 5 बजे जनरल नियाजी ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया. उन्होंने अपने बिल्ले उतार दिए और रिवॉल्वर भी जमीन पर रख दी. फिर जनरल सैम मानेकशॉ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को फोन कर बांग्लादेश पर जीत की खबर सुनाई. इसके बाद इंदिरा गांधी ने ऐलान कर दिया कि ढाका अब एक आजाद देश की आजाद राजधानी है.

https://twitter.com/PIB_India/status/1471342130022944770

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