कच्ची घानी का तेल. बहुत सुना होगा आपने. इन दिनों इस कच्ची घानी को लेकर लोग भड़के हुए हैं. वजह खुद कच्ची घानी नहीं है, बल्कि इसके नाम पर की जा रही मार्केटिंग है. पूरी बात बताएंगे. पहले पत्रकार सयंतन बीरा का ये ट्वीट देखिए, जो उन्होंने 24 अगस्त को किया था. इसमें लिखा है,
“असल में कच्ची घानी या कोल्ड प्रेस तेल (उत्पादों में) होते ही नहीं हैं. साफ है कि ये बस ब्रैंड के नाम के तौर पर लिखा होता है और उत्पाद की प्रवृत्ति को रिप्रज़ेंट नहीं करता. अधिकतर ब्रैंड यही करते हैं. ऐसी भ्रामक मार्केटिंग के ज़रिये उपभोक्ता बेवकूफ बन रहे हैं.”
इसके साथ ही ट्वीट में फॉर्च्यून कच्ची घानी सरसों के तेल की फोटो लगी थी. ब्रैंड के नाम के साथ तो कच्ची घानी तेल लिखा था. लेकिन पैकेट के पीछे लिखा था,
“फॉर्च्यून प्रीमियम कच्ची घानी सिर्फ एक ब्रैंड का नाम है. यह इस तेल की प्रकृति को नहीं दर्शाता.”
माने ये पूरा तो तेल का नाम है. ज़रूरी नहीं कि तेल के नेचर भी कच्ची घानी वाला हो.
अब लोग बिदक गए. जमकर कॉमेंट किए कि इस तरह के भ्रामक प्रचार बंद होने चाहिए. ये ट्वीट देखिए.
लेकिन ये कच्ची घानी होता क्या है और इसमें ऐसा क्या है कि इसके नाम पर प्रोडक्ट बेचने के लिए कंपनियां कुछ भी करने को तैयार हैं? आइए जानते हैं.
कच्ची घानी तेल
भारत में अधिकतर घरों में सरसों का तेल खाने की चीजों में इस्तेमाल होता है. अगर आपके घर में भी होता है, तो कच्ची घानी सरसों के तेल का नाम ज़रूर सुना होगा. तेल बेचते वक्त इसे जोर देकर बेचा जाता है. मानो तेलों में सर्वोत्तम यही हो. कच्ची घानी तेल को ही Cold Pressed Oil भी कहते हैं.
अलग-अलग तिलहनों जैसे- सरसों, तेल, राई वगैरा से कच्ची घानी का तेल तैयार किया जा सकता है. कच्ची घानी के तेल में महक बहुत तेज होती है और ये थोड़ा ज़्यादा चिपचिपा लगता है. तिलहनों को बहुत कम तापमान पर, अधिक देर तक गर्म करके कच्ची घानी का तेल तैयार किया जाता है. कम तापमान में गर्म किए जाने के कारण इसके पोषक तत्व मरते नहीं हैं और इसीलिए इसे ज़्यादा फायदेमंद माना जाता है.
कच्ची घानी तेल में ओमेगा और फैटी एसिड्स अच्छी मात्रा में रहते हैं. ओमेगा आंखों के लिए अच्छा रहता है. वहीं, फैटी एसिड्स का उचित मात्रा में होना भी शरीर के लिए अच्छा माना जाता है.
महंगा क्यों होता है कच्ची घानी?
दरअसल तिलहन से तेल निकालने के लिए दो तरह की मशीनें इस्तेमाल होती हैं.
1. ऑयल एक्सपेलर
2. कोल्ड प्रेस मशीन
ऑयल एक्सपेलर में तेजी से काम होता है. अधिक तापमान पर बीज को तपाया जाता है. नतीजतन, इससे निकलने वाले तेल की मात्रा भी कुछ अधिक होती है. लेकिन जोखिम ये रहता है कि तेल से तमाम पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं.
कोल्ड प्रेस मशीन में बीज को धीरे-धीरे, कम ताप पर तपाया जाता है. इसमें तेल पेरने वाला हिस्सा लकड़ी का बना होता है और कुछ-कुछ कोल्हू की तरह काम करता है. कोल्ड प्रेस मशीन से निकले तेल की मात्रा कुछ कम हो सकती है लेकिन इसमें पौष्टिक तत्व बने रहते हैं. इसे ही कच्ची घानी तेल कहते हैं. अधिक बीज से कम मात्रा में तेल तैयार होने के कारण ही कच्ची घानी तेल के दाम अधिक होते हैं.
शुद्ध तेल की कवायदें
सरसों के तेल की शुद्धता को लेकर लगातार कवायदें होती रहती हैं. पिछले साल यानी 2020 में ही देश के फूड सेफ्टी रेग्युलेटर FSSAI ने नियम बनाया था कि सरसों के तेल को तैयार करते वक्त अब इसमें कोई भी दूसरा वनस्पति तेल नहीं मिलाया जाएगा. 1 अक्टूबर 2020 से ये नियम लागू है.
फूड सेफ्टी एंड सिक्योरिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है. इसका काम ही देशभर में खाने-पीने की चीजों की क्वॉलिटी पर नजर रखना है. नया नियम लागू करते हुए FSSAI ने कहा था –
“फूड एंड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स रेगुलेशन-2011 दो ऐसे खाद्य वनस्पति तेलों के मिश्रण की परमिशन देता है, जहां किसी एक तेल का अनुपात वज़न के हिसाब से 20 फीसद से कम नहीं होता. अब भारत सरकार ने FSSAI को निर्देश दिया है कि सरसों के तेल में मिश्रण पर रोक लगाई जाए. ऐसा इसलिए ताकि लोगों के हित में घरेलू इस्तेमाल के लिए सरसों के शुद्ध तेल का निर्माण हो और वही बेचा जाए.”
और अब अगर कच्ची घानी को एक ब्रैंड नेम के तौर पर इस्तेमाल करने की बात आ रही है, तो ये भी एक किस्म की मिलावट ही है. इस पर अभी किसी कंपनी या सरकार की तरफ से जवाब आना बाकी है.
#WATCH | Indian Navy video on INS Visakhapatnam, the indigenously built guided-missile destroyer, that is all set to be commissioned by Defence Minister Rajnath Singh today.
(Source: Indian Navy) pic.twitter.com/G7tsk2AfbR
— ANI (@ANI) November 21, 2021
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