मुझे भी यह शिकायत थी पर मैंने देखा कि मैं कम खाता हूँ। नमक कम खाता हूँ और घी भी। मुझे तो हर बार पाखाने के समय खून भी आता था।
मुझे मालूम है कि मुझे कम वोट मिलेंगे क्योंकि ना तो मैं योगा की बात करूंगा ना ही कोई डॉक्टरी की। क्योंकि लोग कम पैसे वाले इलाज पर विश्वास नहीं करते। अगर पुरातन धार्मिक पुस्तकों में से हवाले देता तो और बात थी।
इस की एक मिसाल मैं देता हूँ। बहुत साल हुए अपनी पत्नी को मैं एक डॉक्टर साहब की प्रशंसा सुन कर उनके यहां ले गया। उनके यहां कोई भीड़ नहीं थी। मेरी पत्नी की नब्ज देखते हुए साथ बैठे एक आदमी से सोने की कीमत की बातें कर रहे थे। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनकी दवाई कोई काम करेगी।
फीस पूछी तो उन्होंने कहा दो रुपये। और पर्ची जिस पर दवाई लिखी थी हमारे हाथ में थमा दी। मेरी पत्नी तो दवा भी फार्मेसी से खरीदने के लिए रजामंद नहीं थी। खैर हमने दवा खरीद भी ली और पत्नी कुछ ठीक भी हो गयी।
कहने का मतलब यह है कि यह दुनिया प्रचार की दुनिया है। अगर कोई वही बात धार्मिक लहजे में बताए जैसे कोई सन्त कोई दवाई दे तो उसका मानसिक असर भी है कि अब में जरूर ठीक हो जाऊंगा। बाकी चमत्कारी शक्तियों कै बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।
बात मैं अपनी कब्ज के बारे में कर रहा था। क्योंकि में ऐलोपैथिक दवा पर कम विश्वास करता था मैं एक सरकारी होम्योपैथिक डिस्पेंसरी में चला गया। हालांकि मैं होम्योपैथी के बारे में कुछ कुछ जानता था कि वहां कोई इन्जेक्शन वगैरह नहीं लगाए जाते उस डॉक्टर ने मुझे इन्जेक्शन लगा कर मुझसे काफी रुपये ऐंठ लिए। हाल वैसा ही रहा।
धीरे धीरे मुझे समझ आया कि मैं भोजन, नमक और घी कम खाता हूँ वही इस रोग का कारण है। अगर शरीर के अंदर ही कम डालूंगा तो वह शरीर जज्ब कर लेगा। बाहर क्या खाक आएगा।
दूसरों के बारे में तो कह नहीं सकता। पर मैं अपने तजुर्बे को जरूर बता सकता हूँ। आप देख सकते हैं कि मीट मे क्योंकि घी होता है और हम उस में हम और घी भी डाल लेते हैं और नमक भी होता है तो ऐसा खाना खाने वाले को कब्ज कम ही होती है।
ना मीट खाने वाले घी खा कर तो देख सकते है। ज्यादा मात्रा में खाएंगे तो दूसरी बीमारियों जैसे बल्डप्रेशर या दिल की बीमारी को निमंत्रण दे सकते हैं।
पानी खूब पीएं। शराब के बारे में मैं सलाह नहीं दे सकता क्योंकि मैंने खुद तह किया हुआ है कि शराब में नहीं पीऊंगा चाहे बीमार ही रहूं। हालांकि पहले थोड़ी ही मात्रा में पीता था। उससे मुझे प्यास लगती थी। क्योंकि अक्सर मैं और बातों में उलझ कर पानी पीना भूल जाता हूँ और चाय सिर्फ एक बार ही पीता हूँ।
हां अब मैं सैर भी करता हूँ। आमतौर पर दो घंटे की सैर मैं कर लेता हूँ। फल मैं जो छिलके के साथ खाने वाले होते हैं जरूर खाता हूँ। सेब, कीवी वगैरा छिलके समेत खाता हूँ। टाहली या शहतूत के पत्ते भी खा लेता हूँ मगर छिप कर। अंगूरों के भी खा लूं पर उन पर दवाई छिड़की होती है।
हां, कब्ज वाले पीली राल का प्रयोग कर देख सकते हैं। मुझे उस से फायदा हुआ था। मैंने यह नुस्खा डॉक्टर गणेश दत्त चौहान की एक पुस्तक में पढ़ा था जो खाने पीने वाली वस्तुओं से इलाज के बारे में थी। वह किताब मेरे से गुम हो गई थी फिर कोशिश करने पर भी नहीं मिली थी।
अब पूरी मात्रा के बारे में मुझे याद नहीं। पंसारी से पीली राल खरीदी थी। उसे पीसकर दूध के साथ एक चम्मच तीन बार लेना था। क्योंकि मैं दूध नहीं पीता मैंने तो नमक वाले दही में मिलाकर खा ली थी। ज्यादा समय तक लेने की मुझे जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मुझे अपना रोग समझ आ गया था।
अब हाल यह है कि ज्यादा खाता हूँ बीमार हो जाता हूँ। सो मुझे ठीक होने के लिये सैर अधिक करनी पड़ती है। कम खाने से कब्ज हो जाती है। पीली राल तो अब कभी ली नहीं बहरहाल कतीरा गूंद सूखी दातों से चबा लेता हूँ। इस से मेरे दातों की वर्जिश भी हो जाती है। मेरा खयाल है कि कब्ज में भी फायदा जरूर होता होगा। मकई के भूनें हुये दाने खाना भी मुझे पसंद है। वैसे हैवी पैराफिन के एक दो चमचे पीने से भी फायदा होता है।
मैंने अपना तो बता दिया। अब आप खुद अपने तजुर्बे से जानिये।
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