कुछ समय हमने पूर्व मोटापे के डर से मक्खन और घी को अपने भोजन का परम शत्रु मान लिया था,किन्तु कहते हैं न कि “अधूरी जानकारी खतरनाक होती है।”
बाद में थोड़ा आहार विशेषज्ञों से और थोड़ा पढ़ने से इस बारे में पूरी जानकारी मिली।
एक दिन मेरे घर में चर्चा छिड़ गई कि मक्खन और देसी घी में बेहतर क्या है?
पतिदेव अपने चिर परिचित दार्शनिक अंदाज में बोले,”मक्खन पिता और घी पुत्र है,इनमें क्या फर्क हो सकता है?दोनो में से कोई भी प्रयोग कर लो।तुम लोग मलाई का मक्खन निकालते तो हो।😊
“रहने दीजिए पापा,मेरी और आपकी nature में फर्क नहीं है क्या?” बेटा बोला😀 दोनों एक जैसे कैसे हो सकते हैं?”
“मैं सर्च कर के पता लगाती हूँ कि इनमें बेहतर क्या है?” मैंने कहा।
मैंने यह प्रश्न क्योरा पर डाला,संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो गूगल से यह जानकारी मिली जो आप सबसे साझा कर रही हूँ।
घी या मक्खन के बिना भोजन का स्वाद अधूरा है।वसा की पूर्ति के लिए भी भोजन में इनका प्रयोग जरूरी है।यहाँ मैं सफेद मक्खन की बात कर रही हूँ,जो हम मलाई को मिक्सी में मथकर निकालते हैं।
घी को अपने उत्तम औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है जो मक्खन को पिघलाकर बनाया जाता है।इसका अधिकांश आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग किया जाता है।
मक्खन में दूध का अंश ज्यादा होने के कारण इसमें लैक्टोज ज्यादा पाया जाता है।मक्खन के पिघलने पर जो घी बनता है उसमें लैक्टोज खत्म हो जाता है।
बहुत से लोगों को लेक्टोज से एलर्जी होती है तो वे दूध और मक्खन का प्रयोग नहीं करते लेकिन वे भोजन में घी का प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि उसमें lactose नहीं होता।अधिकांश लोगों को यह ग़लतफहमी होती है कि घी भी तो दूध से बनता है,तो वे उसका प्रयोग नहीं करते।उनको मक्खन का प्रयोग नहीं करना चाहिए,घी का प्रयोग बेखटके कर सकते है।
मक्खन में वसा और प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में मौजूद रहते हैं,इसलिए उसकी तुलना में घी इन कारणों से भी बेहतर है।मक्खन केवल उन्हीं लोगों के लिए लाभप्रद है जिनको High protein diet लेने की सलाह दी जाती है।
मक्खन की तुलना में घी जल्दी नहीं खराब होता।कारण यह है कि घी में फॉस्फोलिपिड्स, एण्टीऑाक्सिडन्ट्स,पानी और अम्लता मक्खन के मुकाबले कम होती है।
घी मक्खन का ही सगा सम्बन्धी है फिर भी यह खाने में हल्का होता है जबकि मक्खन खाने के बाद उसका acidic प्रभाव देखने को मिलता है।घी शरीर द्वारा मक्खन के मुकाबले जल्दी सोख लिया जाता है,जबकि मक्खन को देर लगती है।
घी में काली मिर्च या दूसरे मसाले मिलाने के बाद वह विभिन्न रोगों में औषधि का काम भी करता है,इस लिहाज से भी वह बेहतर है।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान की रिसर्च का दावा है कि गाय का घी उन एन्जाइम्स को बढ़ाता है जो कैंसर पैदा करने वाले जीवाणुओं को निष्क्रिय कर देते हैं।
मक्खन के विपरीत घी एक क्षारीय आहार होता है।घी में वसा की छोटी श्रृंखला उपस्थित होती है जिसे ब्यूटरेट्स कहते हैं।इससे आंतों में स्वास्थ्यवर्धक बैक्टीरिया बढ़ते हैं।
घी खाने से आपको कई तरह के फायदे हो सकते हैं।योगहीलर के संस्थापक केट स्टिलमैन बताते हैं,इंटेस्टाइनल बैक्टीरिया फाइबर को बटरिक एसिड में बदलकर ऊर्जा पैदा करता है।यह आँतों की दीवार मजबूत करता है।इससे हमारे शरीर के पाचन-तंत्र को बड़ी मदद मिलती हैI
घी में मीडियम-चेन-फैटी एसिड होते हैं,जिन्हें लीवर तुरंत सोख लेता है और जल्द ही बर्न भी कर देता हैI
घी इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि इसमें सीएलए (कॉन्जुगेटेड लिनोइक एसिड) मौजूद होता है।यह एक फैटी एसिड होता है जो कैंसर से लड़ने और वजन घटाने में मदद करता है।घी में हेल्दी फैट होता है जिससे खराब फैट हटाने में मदद मिलती है।
घी में एमिनो एसिड होता है जो जमे हुए फैट को पिघलाकर फैट सेल्स का साइज पहले की तरह करने में मदद करता है।अगर आपके शरीर में फैट जल्दी इकट्ठा होने लगता तो घी मददगार हो सकता है।
घी वसा में घुलनशील विटामिन्स का अच्छा स्त्रोत हैIयह विटामिन K, Aऔर E जैसे विटामिन्स का बहुत अच्छा स्त्रोत हैl[1]
पश्चिम द्वारा फैलाई गई देसी घी के प्रति भ्रान्तियों ने बहुत वर्ष तक हमें डालडा,रिफाइण्ड और ऑलिव ऑयल का बहुतायत से प्रयोग कराया,जबकि उनमें घी की तुलना में बेहद कम पोषक तत्व होते हैं।
हमारे देश में दूध दही की नदियाँ बहतीं थीं।आज से पचास साल पहले बहुत से घरों में गाय भैंसें होतीं थीं।डालडा और रिफाइण्ड का बर्चस्व कायम करने के लिए उस समय यह भ्रान्ति फैलाई गई कि घी मोटापे और हृदय रोग का कारण है जबकि यह शरीर में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल का निर्माण करने में सहायक है।
घी और मक्खन भारतीय विरासत के भोज्य पदार्थ हैं। सीमित मात्रा में आवश्यकता के अनुसार इनका प्रयोग लाभदायक है,फिर भी घी मक्खन से ज्यादा बेहतर है।