जेनेवा. बिना वैक्सीन कोरोनावायरस से लड़ रही दुनिया के लिए अभी इम्यूनिटी और एंटीबॉडीज ही उम्मीद की किरण हैं। लेकिन, कई हफ्तों से ‘हर्ड इम्यूनिटी’ पाने के नाम पर बहस चल रही है। मंगलवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी इस बहस में कूद पड़ा। उसने सामूहिक प्रतिरोधकता के इस नए विचार या अवधारणा को खतरनाक बताया।
दरअसल, हर्ड इम्यूनिटी एक पेचीदा गणितीय सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे कोरोना नियंत्रण के लिए सही भी मान रहे हैं। इसीलिए, डब्लूएचओ को दखल देना पड़ा।
क्या है डब्ल्यूएचओ की चेतावनी
- विश्व स्वास्थ्य संगठन में हेल्थ इमरजेंसी डायरेक्टर डॉ माइकल रेयान ने दुनिया की सरकारों की उस सोच की भी आलोचना की है जिसमें वे लॉकडाउन में मर्जी से छूट और बेहद हल्के प्रतिबंध लगाकर यह सोच रहे हैं कि अचानक से उनके देशवासी “जादुई इम्यूनिटी” प्राप्त कर लेंगे।
- डॉ. रेयान ने चेतावनी देते हुए कहा कि, ‘यह सोचना गलत था और आज भी है कि कोई भी देश कोविड-19 के लिए अपनी आबादी पर कोई “जादू” चलाकर उसमें इम्यूनिटी भर देगा। इंसान जानवरों के झुंड नहीं हैं। हर्ड इम्यूनिटी की बात तब करते हैं, जब यह देखना होता है कि किसी आबादी में कितने लोगों को वैक्सीन की जरूरत है।’
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— World Health Organization (WHO) (@WHO) May 12, 2020
- यह एक बहुत ही खतरनाक अंकगणित होगा। इससे लोग, उनका जीवन और उनकी पीड़ा का समीकरण उलझ जाएगा। जिम्मेदार सदस्य देशों को हर एक इंसान को महत्व देना चाहिए। कोरोना बेहद गंभीर बीमारी है। यह दुश्मन नंबर एक है। हम इसी बात को बार-बार कह रहे हैं।’
- डब्ल्यूएचओ की कोविड -19 रिस्पांस टीम की तकनीकी प्रमुख डॉ मारिया वान केरखोव ने भी कहा- शुरुआती आंकड़ों से पता चला है कि अभी जनसंख्या का बहुत कम स्तर कोरोना से संक्रमित है। लोगों में कम अनुपात में एंटीबॉडीज हैं। यह महत्वपूर्ण है … क्योंकि हम हर्ड इम्यूनिटी शब्द का इस्तेमाल तब करते हैं जब लोगों को वैक्सीन लगाने के बारे में सोचते हैं।’
क्या होती है हर्ड इम्यूनिटी, 5 बड़ी बातें
- हर्ड इम्यूनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्यूनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इस तरह हर्ड इम्यूनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी की बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना।
- इस वैज्ञानिक आइडिया के अनुसार, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की इम्यूनिटी उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। इस दौरान जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं। यानी उनमें प्रतिरक्षा के गुण पैदा हो जाते हैं। इसके बाद झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है। इसे ही ‘हर्ड इम्यूनिटी’ कहा जा रहा है।
- हर्ड इम्युनिटी महामारियों के इलाज का एक पुराना तरीका है। व्यवहारिक तौर पर इसमें बड़ी आबादी को नियमित वैक्सीन लगाए जाते हैं जिससे लोगों के शरीर में प्रतिरक्षी एंटीबॉडीज बन जाती हैं। जैसा चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ। दुनियाभर में लोगों को इनकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं।
- वैज्ञानिकों का ही अनुमान है कि किसी देश की आबादी में कोविड-19 महामारी के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कोरोनावायरस उसकी करीब 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर चुका हो। वे मरीज अपने शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाकर और उससे लड़कर इम्यून हो गए हों।
- विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 संक्रमण के मामलो में तो मौजूदा हालात को देखते हुए 60 से 85 प्रतिशत आबादी में प्रतिरक्षा आने के बाद ही हर्ड इम्यूनिटी बन पाएगी। पुरानी बीमारी डिप्थीरिया में हर्ड इम्यूनिटी का आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में 85 प्रतिशत और खसरा में करीब 95 प्रतिशत है।
.@WHO is calling on countries to do more for nurses:
-expand education & create jobs
-ensure occupational safety & health
-ensure timely pay, sick leave, health insurance & mental health support. #SupportNursesAndMidwives pic.twitter.com/nGfizWNguS— Tedros Adhanom Ghebreyesus (@DrTedros) May 12, 2020
कोरोना में पहली बार ब्रिटेन में चर्चा चली
- मार्च में पहली बार ब्रिटिश सरकार ने उम्मीद जताई थी कि उनके यहां फैल रहे कोरोना को हर्ड इम्यूनिटी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके समर्थकों की ओर से तर्क दिया गया था कि वायरस को आबादी में फैलने दिया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इम्यून हो सकें। हालांकि बाद में देश के स्वास्थ्य सचिव मैट हैनकॉक ने इस बात से इनकार किया कि यह सोच कभी भी सरकार की रणनीति का हिस्सा थी।
अब दुनिया में स्वीडन मॉडल की चर्चा
- दुनिया में सिर्फ स्वीडन एकमात्र देश है जहां पर बिना वैक्सीन के हर्ड इम्युनिटी को अपरोक्ष रूप से आजमाया गया है। वहां के 2000 से भी ज्यादा रिसर्चर्स ने बकायदा एक याचिका पर दस्तखत करके सरकार से कहा कि हमें हर्ड इम्युनिटी पर आगे बढ़ना चाहिए।
- स्वीडन ने अपने यहां छोटे बच्चों के लिए 9वीं कक्षा तक के स्कूल, रेस्तरां, स्टोर, पब, बार और अन्य व्यवसाय भी बंद नहीं किए। सवा करोड़ की आबादी वाले इस देश में 70 साल से ऊपर के बुजुर्गों का खास ध्यान रखा गया और सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन हुआ। अब दुनियाभर में इसी मॉडल की चर्चा हो रही है।
- worldometers.info के मुताबिक स्वीडन में कोरोनावायरस के 27 हजार 272 केस सामने आए हैं जिसमें से 4 हजार 971 लोग ठीक हो गए जबकि 3 हजार 313 लोगों की मौत हो गई। आंकड़ाें के लिहाज से स्वीडन में डेथ रेट 40 प्रतिशत और रिकवरी रेट 60% है।
Nurses are on the frontlines of the #COVID19 response, from community clinics to intensive care units in hospitals.
Today, we pay tribute to all the nurses – and #healthworkers – who have lost their lives during the COVID-19 pandemic. #ThanksHealthHeroes pic.twitter.com/Fd3voLemAj
— Tedros Adhanom Ghebreyesus (@DrTedros) May 12, 2020
क्या भारत भी हर्ड इम्यूनिटी की राह पर है?
- भारत में ये विषय लॉकडाउन 2.0 खुलने के बाद 3 मई के बाद से चर्चा में आ गया था। अब लॉकडाउन 3.0 खुलने के दिन नजदीक आने के चलते इस पर सभी की नजर है। अभी तक हमारे यहां करीब 74 हजार मामले हैं। 2415 लोगों की मौत हो चुकी है। 24 हजार 125 मरीज रिकवर हो चुके हैं।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा- हमारे यहां कोरोना के मरीजों के ठीक होने की दर हर दिन बेहतर हो रही है। 13 मई तक यह 31.7% पर है। कोरोना से मृत्यु की दर हमारे यहां दुनिया में सबसे कम 3.2% है। जबकि, दुनिया में यह दर 7 से 7.5% है।
- विशेषज्ञों के मुताबिक, हर्ड इम्यूनिटी पाना भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए बेहद गंभीर विषय है। बिना वैक्सीन के पुरानी महामारियों में लोगों के मरने की संख्या भी इस ओर इशारा करती है कि भारत में लोगों को संक्रमण से बचाकर रखना ज्यादा जरूरी है।
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