व्रत में प्याज और लहसुन क्यों नहीं खाते हैं इसके पीछे का कारण जानने से पहले आपको यह जानना होगा कि हमारे खाने की चीजों को कितने भागों में बांटा गया है। आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है सात्विक, राजसिक और तामसिक। मानसिक स्थितियों के आधार पर इन्हें हम ऐसे बांट सकते हैं…
सात्विक: मन की शांति, संयम और पवित्रता जैसे गुण
राजसिक: जुनून और खुशी जैसे गुण
तामसि
ये सब कारण हैं लहसुन और प्याज ना खाने के पीछे
अहिंसा: प्याज और लहसुन तथा अन्य ऐलीएशस पौधों को राजसिक और तामसिक रूप में वर्गीकृत किया गया है। जिसका मतलब है कि अज्ञानता में वृद्धि करना। हिंदू धर्म में हत्या रोगाणुओं की भी निषिद्ध है जबकि जमीन के नीचे उगने वाले भोजन में समुचित सफाई की जरूरत होती है जो सूक्ष्मजीवों की मौत का कारण बनता है। इस वजह से व्रत के दिनों में प्याज और लहसुन नहीं खाया जाता है और ब्राह्मण भी लहसुन और प्याज से परहेज करते हैं।
सनातन धर्म के अनुसार: सनातन धर्म के वेद शास्त्रों के अनुसार प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देती हैं जिस कारण अध्यात्मक के मार्ग पर चलने में बाधा उत्पन्न होती हैं और व्यक्ति की चेतना प्रभावित होती है। इस कराण इनका सेवन नहीं करना चाहिेए।
व्यवहार में होता है बदलाव: साथ ही कुछ लोगों का ये भी कहना है कि मास, प्याज और लहसुन का ज्यादा मात्रा में सेवन व्यवहार में बदलाव का कारण बन जाता है। शास्त्र के अनुसार लहसुन, प्याज और मशरूम ब्राह्मणों के लिए निषिद्ध हैं क्योंकि आमतौर पर ये अशुद्धता बढ़ाते हैं और अशुद्ध खाद्य की श्रेणी में आते हैं। ब्राह्मणों को पवित्रता बनाए रखने की जरूरत होती है क्योंकि वे देवताओं की पूजा करते हैं जोकि प्रकृति में सात्विक होते हैं। व्रत के दिनों को भी बेहद पवित्र माना गया है और भगवान को खुश करने के लिए व्रत रखा जाता है, ऐसे में अशुद्ध मन के साथ व्रत कैसे रखा जा सकता है इसलिए व्रत के समय में प्याज और लहसुन खाना मना होता है।
प्याज और लहसुन ना खाने के पीछे है यह कहानी
‘जैसा अन्न वैसा मन’ मतलब जैसा भोजन हम खाते हैं उसका असर हमारे तन मन पर पड़ता है और हमारी प्रवृति भी वैसी होनी शुरू हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भोजन वही ग्रहण करना चाहिए जो सात्त्विक हो। दूध, घी, चावल, आटा, मूंग, करेला जैसे सात्त्विक पदार्थ हैं। तीखे, खट्टे, चटपटे, अधिक नमकीन आदि पदार्थों से निर्मित भोजन रजोगुण में बढ़ौतरी करता है। लहसुन, प्याज, मांस-मछली, अंडे आदि जाति से ही अपवित्र हैं और यह राक्षसी प्रवृति के भोजन कहलाते हैं।
प्याज और लहसुन ना खाने के पीछे एक कहानी भी है। ऐसा कहा जाता है कि समुद्रमंथन से निकले अमृत को मोहिनी रूप धरे विष्णु भगवान जब देवताओं में बांट रहे थे तभी दो राक्षस राहु और केतू भी वहीं आकर बैठ गए।
भगवान ने उन्हें भी देवता समझकर अमृत की बूंदे दे दीं लेकिन तभी उन्हें सूर्य व चंद्रमा ने बताया कि यह दोनों राक्षस हैं। भगवान विष्णु ने तुरंत उन दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इस समय तक अमृत उनके गले से नीचे नहीं उतर पाया था और चूंकि उनके शरीरों में अमृत नहीं पहुंचा था वो उसी समय जमीन पर गिरकर नष्ट हो गए लेकिन राहू और केतु के मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए दोनों राक्षसो के मुख अमर हो गए।
भगवान विष्णु द्वारा राहू और केतू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि यह दोनों सब्जियां अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं पर क्योंकि यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज गंध है और ये अपवित्र हैं जिन्हें कभी भी भगवान के भोग में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।