तुम्‍हारा स्‍वभाव!

सबसे बड़ा संकट दूसरे को बदलने का है. दूसरे के हिसाब से खुद को बदलने, साथ चलने का हुनर हम पीछे छोड़ आए हैं. हर कोई जब दूसरे को बदलने की जिद करके बैठा रहेगा तो रिश्‍ते में प्रेम, स्‍नेह कहां से आएगा.

‘मैं तो कोशिश करती रही लेकिन उनका स्‍वभाव नहीं बदला. जब स्‍वभाव नहीं बदला तो मेरे पास रिश्‍ते से बाहर जाने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं रहा.’ उदयपुर से राधिका श्रीवास्‍तव ‘जीवन संवाद ‘ को लिखती हैं कि जब सामने वाले का स्‍वभाव नहीं बदला जा सके तो रिश्‍ते निभाना मुश्किल हो जाता है.

राधिका अकेली नहीं हैं. इस समय हमारा सबसे बड़ा संकट यही है कि हम दूसरे का स्‍वभाव तो पूरी तरह से बदलना चाहते हैं लेकिन अपनी ओर हमारा ध्‍यान नहीं है. जब तक अपनी ओर ध्‍यान नहीं होगा, दूसरे को बदलने की हजार कोशिश का कोई असर नहीं होगा. किसी को बदलना आसान नहीं होता. क्‍यों! इसलिए क्‍योंकि बदलने की एक उम्र होती है.

अब तक मैं जितने भी लोगों से मिला हूं किसी को यह कोशिश करते नहीं पाया कि वह अपना स्‍वभाव बदलने के प्रयास में है. हम सब केवल यही कोशिश करते हैं कि किसी तरह सामने वाले का व्‍यवहार बदल जाए. यह भूलते हुए कि जिस तरह हम किसी को बदलना चाहते हैं, वैसे ही हमें बदलने के लिए बेचैन रहने वालों की कमी नहीं!

सबसे बड़ा संकट दूसरे को बदलने का है. दूसरे के हिसाब से खुद को बदलने, साथ चलने का हुनर हम पीछे छोड़ आए हैं. हर कोई जब दूसरे को बदलने की जिद करके बैठा रहेगा तो रिश्‍ते में प्रेम, स्‍नेह कहां से आएगा.
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